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[चौवन]
जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ धर्मों का। श्री हरिभद्रसूरि ने भी 'पञ्चाशक' (श्लोक १२) में प्ररूपित किया है कि तीर्थंकर ऋषभदेव और महावीर दोनों का धर्म अचेलक था। इन प्रमाणों से श्री जिनभद्रगणी की उपर्युक्त घोषणा अप्रामाणिक अर्थात् स्वकल्पित सिद्ध हो जाती है। (अध्याय २/ प्र.१)।
ख-हड़प्पा से प्राप्त सिन्धुसभ्यतायुगीन (ई० पू० २४०० वर्ष प्राचीन) जिनप्रतिमा और लोहानीपुर (पटना, बिहार) में उपलब्ध वैसी ही ३०० वर्ष ई० पू० की तीर्थंकरमूर्ति सर्वथा नग्न हैं। मथुरा के कंकालीटीका में मिली कुषाणकालीन (प्रथम शती ई० की) जिनप्रतिमाएँ भी पूर्णतः नग्न (किसी भी प्रकार के वस्त्र से रहित) हैं। यह भी इस बात का प्रमाण है कि तीर्थंकरों ने सवस्त्रतीर्थ का नहीं, अपितु निर्वस्त्रतीर्थ का उपदेश दिया था। अतः जिनभद्रगणी जी का कथन स्वकल्पित है। (अध्याय २/प्र.१)।
ग-ऋग्वेद (१५०० ई० पू०) में वातरशन (वायुरूपी वस्त्रधारी अर्थात् नग्न) मुनियों एवं शिश्नदेवों (नग्नदेवों) के नाम से निर्ग्रन्थ मुनियों का वर्णन है। सम्पूर्ण बौद्ध साहित्य में, चाहे वह ईसापूर्वकालीन हो या ईसोत्तरकालीन, निर्ग्रन्थ-सम्प्रदाय के साधुओं को नग्नवेशधारी बतलाया गया है। 'महाभारत' (ई० पू० ५००-ई० पू० १००) में निर्ग्रन्थ साधुओं को 'नग्नक्षपणक' शब्द से अभिहित किया गया है। वैदिक पुराणों में 'निर्ग्रन्थ' और 'दिगम्बर' शब्द नग्न जैन मुनियों के लिए प्रयुक्त हुए हैं। सम्पूर्ण संस्कृत साहित्य में जहाँ भी 'क्षपणक', 'निर्ग्रन्थ' आदि शब्दों से जैन मुनियों का उल्लेख हुआ है, उन्हें नग्नवेष में ही चित्रित किया गया है। ये प्रमाण भी सिद्ध करते हैं कि श्री जिनभद्रगणी जी की उपर्युक्त घोषणा मनःकल्पित है। (अध्याय २ / प्र.१)।
२. छठी-सातवीं शती ई० के श्वेताम्बराचार्यों ने दिगम्बरमत को 'बोटिकमत' शब्द से अभिहित करते हुए यह कथा गढ़ी है कि दिगम्बरमत का प्रवर्तन वीरनिर्वाण सं० ६०९ (ई० सन् ८२) में बोटिक शिवभूति नाम के एक मौजमस्ती करते हुए नगर में घूमने-फिरनेवाले राजसेवक ने श्वेताम्बरसाधु बनने के बाद किया था। यह 'बोटिकमतोत्पत्तिकथा' आवश्यकनियुक्ति (छठी शती ई०), आवश्यकमूलभाष्य (छठी शती ई०), विशेषावश्यकभाष्य (७वीं शती ई०), प्रवचनपरीक्षा (१६वीं शती ई०) आदि श्वेताम्बरग्रन्थों में मिलती है। इस मनगढन्त कथा के हेतु द्वारा श्वेताम्बरचार्यों ने यह सिद्ध करने की चेष्ट की है दिगम्बरजैनमत तीर्थंकरप्रणीत नहीं है, अपितु एक अत्यन्त साधारण छद्मस्थ पुरुष द्वारा चलाया गया है, तथा वह प्राचीन नहीं, बल्कि श्वेताम्बरमत के बहुत बाद पैदा हुआ है। ___श्वेताम्बरमुनि श्री कल्याणविजय जी दिगम्बरजैनमत को इतना प्राचीन (प्रथम शताब्दी ई० का) भी सिद्ध नहीं होने देना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अपने ग्रन्थ 'श्रमण
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