SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [बावन] जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ आदि अठारह धर्मग्रन्थ, जिन्हें श्वेताम्बर मुनियों एवं विद्वानों ने श्वेताम्बर और यापनीय आचार्यों द्वारा प्रणीत बतलाया है, वे सब दिगम्बरजैन आचार्यों की कृतियाँ हैं। मैंने ग्रन्थ को तीन खण्डों और पच्चीस अध्यायों में विभाजित किया है। उनमें अपने शोधोद्भूत निष्कर्षों का प्रस्तुतीकरण इस प्रकार किया है प्रथम खण्ड दिगम्बर, श्वेताम्बर, यापनीय संघों का इतिहास अध्याय १-काल्पनिक सामग्री से निर्मित तर्कप्रासाद इस अध्याय में उन कपोलकल्पनाओं का वर्णन किया गया है, जिनकी सृष्टि मान्य श्वेताम्बर मुनियों एवं विद्वानों ने अपने पूर्वोक्त काल्पनिक मतों को सिद्ध करने के लिए हेतुरूप में की है। वे इस प्रकार हैं १. तीर्थंकरों के सवस्त्र-तीर्थोपदेशक होने की कल्पना। २. बोटिक शिवभूति के दिगम्बरमत-प्रवर्तक होने की कल्पना। ३. बोटिक शिवभूति के यापनीयमत-प्रवर्तक होने की कल्पना। ४. कुन्दकुन्द के दिगम्बरमत-प्रवर्तक होने की कल्पना। ५. कुन्दकुन्द के प्रथमतः यापनीय होने की कल्पना। ६.कुन्दकुन्द के प्रथमतः भट्टारक होने की कल्पना। ७. उत्तरभारतीय सचेलाचेल निर्ग्रन्थसंघ की कल्पना। ८.सचेलाचेल निर्ग्रन्थसंघ के विभाजन से श्वेताम्बर-यापनीय सम्प्रदायों के उद्भव की कल्पना। ९.अचेल एवं सचेल जिनकल्पों के व्युच्छेद की कल्पना। १०. सामान्यपुरुषों के लिए तीर्थंकरलिंग-ग्रहण के निषेध की कल्पना। ११. अचेलत्व के मुख्य और औपचारिक भेदों की कल्पना। १२. सग्रन्थ में निर्ग्रन्थ की कल्पना। १३. मूलसंघ के यापनीयसंघ का पूर्वनाम होने की कल्पना। १४. कुन्दकुन्द-साहित्य में दार्शनिक विकास की कल्पना। १५. शिवमार में शिवकुमार की कल्पना। १६.अनेक दिगम्बरग्रन्थों के यापनीयग्रन्थ होने की कल्पना। १७.गुणस्थानसिद्धान्त के विकास की कल्पना। १८. सप्तभंगी के विकास की कल्पना। १९. यापनीयों द्वारा अर्धमागधी-आगमों के शौरसेनीकरण की कल्पना। २०. दिगम्बरग्रन्थों में यापनीयमतविरुद्ध कथनों के प्रक्षेप की कल्पना। २१. स्वाभीष्ट कल्पित-शब्दादि का आरोपण। यहाँ क्रमांक १६ पर जिन दिगम्बरग्रन्थों के यापनीयग्रन्थ होने की कल्पना का उल्लेख किया गया है, उनके नाम इस प्रकार हैं-१. कसायपाहुड, २. कसायपाहुडचूर्णिसूत्र, ३. षट्खण्डागम, ४. भगवती-आराधना, ५. भगवती-आराधना की विजयोदया टीका, ६. मूलाचार, ७. तिलोयपण्णत्ती, ८. रविषेणकृत पद्मपुराण, ९. वराङ्गचरित, १०. हरिवंशपुराण, ११. स्वयम्भूकृत पउमचरिउ, १२. बृहत्कथाकोश, १३. छेदपिण्ड, १४. छेदशास्त्र, १५. प्रतिक्रमण-ग्रन्थत्रयी, १६. बृहत्प्रभाचन्द्रकृत तत्त्वार्थसूत्र। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy