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३७४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०५ / प्र० १
में कृष्णजन्म के प्रसंग से इस देवता का विशेष तथा सर्वप्रथम उल्लेख हुआ है । जिनसेन सूरि पुन्नाट द्वारा ७८३ ई० में रचित हरिवंशपुराण में प्राचीन क्षत्रियों के सुप्रसिद्ध हरिवंश का विस्तृत वर्णन हुआ है। उस वंश में उत्पन्न शूर की सन्तति में शौरिपुर ( आगरा के निकट) नरेश अन्धकवृष्णि के दशपुत्रों में सबसे बड़े समुद्रविजय थे और सबसे छोटे वसुदेव। समुद्रविजय के पुत्र अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) बाईसवें तीर्थंकर थे, और वसुदेव के पुत्र कृष्ण जैनपरम्परा के त्रिषष्ठिशलाका-पुरुषों में प्रसिद्ध त्रिखण्डचक्रवर्ती नारायण थे, उनके ज्येष्ठ भ्राता बलराम भी शलाकापुरुष थे। स्वयं वसुदेव कामदेवोपम सुन्दर, सुरूप, सबके प्रिय, अत्यन्त पराक्रमी और साहसी थे । वस्तुतः हरिवंशपुराण के मुख्य नायक वसुदेव ही हैं। वसुदेव की पत्नी देवकी भोजकवंशी उग्रसेन की पुत्री और मथुराधिप कंस की भगिनी थी । स्वयं कंस प्रतापी मगधनरेश जरासंध का जामाता था। कंस दुष्ट, अत्याचारी एवं पितृद्रोही था । उसकी पत्नी भी दुष्ट प्रकृति की थी। कंस ने अपने उपकारक बहनोई वसुदेव और बहिन देवकी को अपने बंदीगृह में डाल रखा था और वहीं देवकी के छह शिशुओं का जन्म हुआ, जिन्हें कंस ने जन्मते ही शिला पर पटक कर मार दिया, क्योंकि यह भविष्यवाणी हो चुकी थी कि देवकी - पुत्र द्वारा कंस का पतन एवं संहार होगा, तथापि देवकी की सातवीं संतान कृष्ण की गुप्तरूप से गोकुल में नन्दगोप के यहाँ उसे पहुँचाकर रक्षा कर ली गई और अन्ततः भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई । इन समस्त तथ्यों के विषय में जैन एवं ब्राह्मणीय अनुश्रुतियाँ प्रायः पूर्णतया एक मत हैं । दिगम्बर श्वेताम्बर परम्पराओं में तो कोई विशेष मतभेद है ही नहीं ।
" परन्तु जो बात ब्राह्मणीय कृष्णचरित्र में कहीं नहीं दृष्टिगोचर होती, किन्तु जैनों के उभय सम्प्रदायों के साहित्य में प्राय: एक सी प्राप्त होती है, वह है उपर्युक्त नैगमेश नाम के देवता द्वारा, इन्द्र की आज्ञा से, देवकी की कृष्ण के पूर्व जन्मी छह संतानों की सुरक्षा । हरिवंशपुराण (सर्ग ३३, श्लोक १६७ - १७३ तथा सर्ग ३५, श्लोक ४ -८ ) के अनुसार देवकी के वासुदेव (कृष्ण) से पूर्व क्रम से उत्पन्न उक्त छहों पुत्रों में से प्रत्येक को जन्मते ही इन्द्र के आज्ञाकारी हारि अपरनाम सुनैगम नामक देव ने मथुरा में कंस के बंदीगृह से ले जाकर भद्रिलपुर नाम के नगर में सुदृष्टि नामक सेठ की अलका नामक पत्नी के पास पहुँचा दिया, जहाँ उनका पुत्रवत् लालन-पालन हुआ ।
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" वस्तुतः अलका ने भी उसी - उसी समय युगल पुत्रों को जन्म दिया था, जो जन्मते ही मर गये। वह देव उन मृत पुत्रों को लाकर देवकी के पास लिटा देता था। देवकी और अलका, दोनों को ही इस शिशु परिवर्तन के विषय में कुछ भी पता नहीं था, और कंस अलका द्वारा प्रसूत उक्त मृत पुत्रों के शवों को ही देवकी
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