________________
अ०५/प्र०१
पुरातत्त्व में दिगम्बर-परम्परा के प्रमाण / ३६९ को लिंग का आकार न होवे, सो जिनप्रतिमा ही नहीं है। क्योंकि जिनवर के रूपसमान ही जिनबिम्ब बनाना चाहिए, अन्यथा ध्यान में विलम्ब होता है। इस वास्ते वस्त्रादिक की शोभा करे, स्थिर ध्यान नहीं हो सकता है।
(श्वेताम्बरों की ओर से) "उत्तर-जिनेन्द्र के तो अतिशय के प्रभाव से लिंगादि नहीं दीखते हैं और प्रतिमा के तो अतिशय नहीं है, इस वास्ते तिस के लिंगादि दीख पड़ते हैं, तो फिर जिनवर-समान तुमारा माना जिनबिम्ब कैसे सिद्ध हुआ? अपितु नहीं सिद्ध हुआ। और तुमारे मत के खड़े-योगासन-लिंगवाली प्रतिमा के देखने से स्त्रियों के मन में विकृति (विकार) होने का भी संभव है, जैसे सुन्दर भग-कुचादि-आकारवाली स्त्री की मूर्ति देखने से पुरुष के मन में विकृति होवे है। और लिंग देखने से जिनप्रतिमा सुभग भी नहीं दीखती है। और उदयपुर के जिले में बागड़देश में तुमारे मत के लिंगाकार-प्रकटवाले नेमीश्वरादि के खड़े योग के ऐसे बिम्ब हैं कि जिनके दर्शन करने वास्ते सगे बहिन-भाई भी प्रायः साथ एक काल में नहीं जाते हैं। और अन्यमतवाले भी ऐसे बिम्ब को देख के उपहास्य करते हैं। यद्यपि महादेव का केवल लिंग ही अन्य-मतवाले पूजते हैं, परन्तु जिसने यह शिवजी का लिंग है, ऐसा नहीं सुना है, वो लिंग को प्रथम ही देखने से नहीं जान सकता है कि यह किस का लिंग है, किन्तु केवल अव्यक्त एक पत्थर की लम्बी सी पिण्डी दीखती है। तथापि, प्रायः संन्यासी लोक, नग्न होने से तिसके दर्शन नहीं करते हैं, ऐसा सुनते हैं। और तुमने तो पुरुषाकार प्रतिमा के वृषणों के ऊपर ऐसा लिंगाकार बनाया है कि जिसको जो कोई देखेगा, तिसको ही अच्छा नहीं लगेगा, तो फिर जिनवर-समान तुमारा जिनबिम्ब किसतरें सिद्ध हुआ?" (तत्त्वनिर्णयप्रासाद / पृ.५८६-५८७)।
मुनि कल्याणविजय जी : मथुरा की प्राचीन जिनप्रतिमाएँ अनग्न
मुनि श्री आत्माराम जी का यह कथन कि जिनेन्द्र के तो अतिशय के प्रभाव से लिंगादि नहीं दीखते, श्वेताम्बर-मान्यता है, दिगम्बर-मान्यता नहीं। दिगम्बर-मतानुसार तीर्थंकर के चौंतीस अतिशय होते हैं, किन्तु उनमें ऐसा कोई अतिशय नहीं होता, जिससे उनके लिंगादि दिखाई न दें। दिगम्बरमत तीर्थंकर के लिंगादि को दृश्यमान ही मानता है, अत: जिनप्रतिमा में लिंगादि का आकार बनाये जाने पर ही वह जिनबिम्ब ('जिन' का प्रतिरूप अर्थात् 'जिन' के समान) बन पाती है। हाँ, श्वेताम्बरमत के अनुसार ऐसी जिनप्रतिमा जिनबिम्ब नहीं है, इससे मैं सहमत हूँ और इसी से यह सिद्ध होता है कि मथुरा के कंकालीटीले से उपलब्ध कुषाणकालीन नग्न जिनप्रतिमाएँ श्वेताम्बरों द्वारा प्रतिष्ठापित नहीं हैं। क्योंकि जो नग्न जिन प्रतिमाओं को जिनबिम्ब ही न मानते
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org