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३६८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०५/प्र०१ वैसे ही श्वेताम्बर-परम्परा में नग्न जिनप्रतिमा को जिनबिम्ब स्वीकार नहीं किया गया है। 'विशेषावश्यकभाष्य' और 'प्रवचनपरीक्षा' आदि ग्रन्थों में मुनियों के नग्नत्व को अश्लीलता, निर्लज्जता और रासभादि पशुओं के समान असभ्यता का लक्षण माना गया है, उसे लोकानुवृत्ति-धर्म के विरुद्ध, संयम एवं ब्रह्मचर्य का विनाशक तथा स्त्रियों में कामविकार का जनक बतलाया गया है, इसीलिए श्वेताम्बर-आगमों में यह कल्पना की गयी है कि तीर्थंकरों का नग्न शरीर उनके अतिशयजन्य शुभप्रभामण्डल से आच्छादित हो जाता है, फलस्वरूप वह उपर्युक्त दोषों का हेतु नहीं रहता। अतः उनकी ऐसी ही प्रतिमा (जिसकी नग्नता शुभप्रभामण्डल से आच्छादित हो) जिनबिम्ब मानी जा सकती है। जो प्रतिमा इससे विपरीत हो अर्थात् जिसमें लिंग, नितम्ब आदि गुह्यांग दिखाई दे रहे हों, वह प्रतिमा श्वेताम्बरमतानुसार अश्लीलता, निर्लज्जता, असभ्यता आदि की प्रकाशक और कामविकार की जनक होने से जिनबिम्ब नहीं कहला सकती, अत एव वह श्वेताम्बरों के लिए दर्शनीय एवं पूजनीय नहीं हो सकती। 'तत्त्वनिर्णयप्रासाद' ग्रन्थ के कर्ता श्वेताम्बर मुनि श्री आत्माराम जी ने ऐसी प्रतिमा का जिनबिम्ब होना अस्वीकार किया है और उसे अपूज्य बतलाया है। (देखिए ,अगला शीर्षक ३)। अत: यह निर्विवाद है कि मथुरा के कंकाली टीले से उपलब्ध प्राचीन जिनप्रतिमाएँ नग्न होने के कारण श्वेताम्बरों द्वारा प्रतिष्ठापित नहीं हैं। और यतः वे श्वेताम्बरों द्वारा प्रतिष्ठापित नहीं हैं, इसलिए यह सुनिश्चित है कि उन पर उत्कीर्ण गण-गच्छादि भले ही कल्पसूत्र की स्थविरावली से साम्य रखते हों, श्वेताम्बरसंघ से सम्बन्धित नहीं हैं, अपितु तत्कालीन अर्धफालक संघ से सम्बद्ध हैं। (देखिए , अगले शीर्षक ६ एवं ८)। इस प्रकार यह मान्यता असत्य सिद्ध हो जाती है कि प्राचीनकाल में दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों की जिनप्रतिमाएँ नग्न होती थीं। सत्य यह है कि केवल दिगम्बरों की ही जिनप्रतिमाएँ , जैसे वर्तमानकाल में नग्न बनायी जाती हैं, वैसे ही प्राचीनकाल में भी नग्न बनायी जाती थीं और श्वेताम्बरों की जिनप्रतिमाएँ पहले गुह्यांगरहित निर्मित की जाती थीं, बाद में सवस्त्र या अंचलिकायुक्त निर्मित की जाने लगीं।
३'
श्वेताम्बरमतानुसार नग्न जिनप्रतिमा जिनबिम्ब नहीं जैसा कि ऊपर कहा गया है श्वेताम्बरमत नाग्न्यलिंग को जिनलिंग नहीं मानता। इसका स्पष्टीकरण तत्त्वनिर्णयप्रासाद ग्रन्थ के कर्ता श्वेताम्बर मुनि श्री आत्माराम जी ने इस प्रकार किया है
(दिगम्बरों की ओर से) "प्रश्न-जिनवर की प्रतिमा को लिंग का आकार करना चाहिए, क्योंकि भगवान् तो दिनरात वस्त्ररहित ही होते हैं। इस वास्ते जिस जिनप्रतिमा
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