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अ०५/प्र०१
पुरातत्त्व में दिगम्बर-परम्परा के प्रमाण / ३६७ यह निष्कर्ष सर्वथा प्रमाणविरुद्ध एवं अयुक्तिसंगत है, क्योंकि प्रथम तो कायोत्सर्गमुद्रा में ऐसी कोई जिनप्रतिमा आज तक उपलब्ध नहीं हुई है, जिसमें पुरुषचिह्न (लिंग) दृश्यमान न हो और पद्मासनमुद्रा में भी ऐसी जिनप्रतिमा प्राप्त नहीं हुई, जिसमें नितम्बजंघादि के नग्न आकार की रचना न की गयी हो, अर्थात् कटि के नीचे का भाग सपाट हो। दूसरे, ऐसी प्रतिमा दिगम्बरों के लिए जिनबिम्ब के रूप में मान्य नहीं हो सकती थी, क्योंकि सर्वसंगपरित्याग का प्रतीकभूत नाग्न्य ही दिगम्बरों के लिए जिनलिंग होता है, अतः उसी को प्रतिबिम्बित करनेवाली प्रतिमा उनके लिए जिनबिम्ब के रूप में पूज्य हो सकती है। इसके, अतिरिक्त सिन्धुसभ्यता-काल से लेकर छठी शती ई० तक की जितनी भी जिनप्रतिमाएँ उपलब्ध हुई हैं, वे सब नग्न हैं, अर्थात् कायोत्सर्गमुद्रामय प्रतिमाएँ पुरुषचिह्न से युक्त हैं और पद्मासन-प्रतिमाओं में नितम्बजंघादि का नग्न आकार बनाया गया है। पद्मासनमुद्रा में नितम्बों के अनावृत होने तथा कटि में वस्त्रपट्टिका बाँधने योग्य सूत्रचिह्न न होने से लिंग का अनावृत होना अर्थात् प्रतिमा का नग्न होना सूचित होता है। अतः "प्रतिमा-विवाद से पूर्व दोनों सम्प्रदायों की जिनप्रतिमाएँ न नग्न होती थीं, न पल्लवचिह्नयुक्त, अतः दोनों में भेद नहीं था," यह मान्यता सर्वथा प्रमाणविरुद्ध एवं अयुक्तिसंगत है। श्वेताम्बरों द्वारा निर्मापित जिनप्रतिमाएँ भले ही अनग्न और पल्लवचिह्नरहित होती हों, किन्तु दिगम्बरों द्वारा निर्मापित जिनप्रतिमाएँ नियमतः नग्न होती थीं।
किन्तु , दूसरी ओर प्रेमी जी मुनि जिनविजय जी के (जैनहितैषी भाग १३/अंक ६ में व्यक्त) शब्दों को उद्धृत करते हुए कहते हैं कि मथुरा के कंकाली टीले में जो लगभग दो हजार वर्ष की प्राचीन प्रतिमाएँ मिली हैं, वे नग्न हैं और उन पर जो लेख हैं, वे श्वेताम्बर-कल्पसूत्र की स्थविरावली के अनुसार हैं। इससे सिद्ध होता है कि प्राचीनकाल में दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों की प्रतिमाएँ नग्न होती थीं। (जै.सा. इ./प्र.सं./ पृ.२४१)।
आश्चर्य है कि प्रेमी जी ने इन दोनों परस्परविरुद्धमतों को कैसे स्वीकार कर लिया! प्रवचनपरीक्षाकार कहते हैं कि दिगम्बरों और श्वेताम्बरों की प्राचीन जिन प्रतिमाएँ न नग्न होती थीं, न सवस्त्र। मुनि जिनविजय जी का कथन है कि प्राचीनकाल में दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों की जिनप्रतिमाएँ नग्न होती थीं। प्रेमी जी ने इन दोनों मतों को सत्य मान लिया, जो असम्भव है। इनमें से प्रथम मत में यह असत्य है कि दिगम्बरों की भी प्राचीन जिनप्रतिमाएँ नग्न नहीं होती थीं। दूसरे मत में यह असत्य है कि प्राचीन श्वेताम्बर-जिनप्रतिमाएँ भी नग्न होती थीं। पहले मत की असत्यता के प्रमाण ऊपर दिये जा चुके हैं। दूसरे मत की असत्यता का प्रमाण यह है कि जैसे दिगम्बर-परम्परा में अनग्न या अंचलिकायुक्त जिनप्रतिमा को जिनबिम्ब नहीं माना जाता,
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