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अ०४ / प्र० २
जैनेतर साहित्य में दिगम्बरजैन मुनियों की चर्चा / ३५३
लिए 'यापनीय' नाम प्रचलित हुआ था । यदि निर्ग्रन्थों और यापनीयों को अभिन्न मान लिया जायेगा, तो बौद्धसाहित्य में जहाँ-जहाँ 'निर्ग्रन्थ' शब्द का प्रयोग हुआ है, वहाँवहाँ उसे 'यापनीय' अर्थ का वाचक मानना होगा। और तब 'निगण्ठनाटपुत्त' (भगवान् महावीर ) और 'यापनीयनाटपुत्त' में कोई भेद न रहेगा। भगवान् महावीर भी यापनीयसम्प्रदाय के सिद्ध होंगे और तब या तो निर्ग्रन्थ-सम्प्रदाय का अस्तित्व असत्य सिद्ध होगा अथवा यापनीय - सम्प्रदाय का । अतः मुनि जी का कथन मूल पर कुठाराघात करनेवाला है। वह निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय के पृथक् अस्तित्व का ही लोप कर देता है । इस प्रकार मुनि जी का यह कथन प्रमाणविरुद्ध एवं तर्कविरुद्ध है कि 'दिव्यावदान' में जिन नग्न निर्ग्रन्थों का उल्लेख है वे निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय के नहीं, अपितु यापनीयसम्प्रदाय के हैं । यतः मुनि जी का कथन प्रमाणविरुद्ध एवं तर्कविरुद्ध है, अतः सिद्ध है कि 'दिव्यावदान' में निर्ग्रन्थ (दिगम्बरजैन) सम्प्रदाय के ही नग्नश्रमणों का उल्लेख किया गया है।
इसी प्रकार बौद्धों का अट्ठकथा - साहित्य यद्यपि पिटकसाहित्य से अर्वाचीन है, तथापि उसमें भी जिन निर्ग्रन्थों (नग्न मुनियों) का उल्लेख है, वे निर्ग्रन्थसम्प्रदाय के ही हैं, यापनीय - सम्प्रदाय के नहीं, यह भी उपर्युक्त प्रमाण एवं तर्क से सिद्ध होता है।
२० निर्णीतार्थ
इस प्रकार ईसापूर्व - शताब्दियों में रचित ऋग्वेद, महाभारत आदि वैदिकसाहित्य तथा अंगुत्तरनिकाय, मज्झिमनिकाय, दीघनिकाय, उदानपालि आदि बौद्धसाहित्य में नग्न निर्ग्रन्थ श्रमणों (दिगम्बरजैन मुनियों) की चर्चा होने से सिद्ध है कि सवस्त्रमुक्ति, स्त्रीमुक्ति आदि की विरोधी दिगम्बरजैन - परम्परा वैदिकयुग से पूर्ववर्ती, भगवान् महावीर से पूर्ववर्ती, गौतम बुद्ध से पूर्ववर्ती, ईसा से पूर्ववर्ती, बोटिक शिवभूति से पूर्ववर्ती, यापनीयसंघ से पूर्ववर्ती और आचार्य कुन्दकुन्द से पूर्ववर्ती है । वह भगवान् ऋषभदेव के युग अविच्छिन्न चली आ रही है । अत: जैनेतर साहित्य में उपलब्ध इन बाह्य प्रमाणों से भी सिद्ध हो जाता है कि
१. दिगम्बरमत का प्रवर्तन बोटिक शिवभूति ने ईसा की प्रथम शताब्दी में या कुन्दकुन्द ने विक्रम की छठी शताब्दी में किया था, ये दोनों मत कपोलकल्पित हैं ।
२. अतः कुन्दकुन्द को दिगम्बरमत- प्रवर्तक सिद्ध करने के लिए जो बोटिकमत को यापनीयमत बतलाया गया है और कुन्दकुन्द के प्रथमतः उसमें दीक्षित होने और
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