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३५० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०४/प्र०२ कथा में कहे गये हैं, थेरीगाथा-अट्ठकथा की कथा में नहीं। 'थेरीगाथा-अट्ठकथा' की कथा में तो यह कहा गया है कि वह (भद्रा) निर्ग्रन्थों के आश्रम में जाकर प्रव्रज्या लेती है-"निगण्ठारामं गन्त्वा निगण्ठे पब्बज्जं याचि।" यहाँ 'निगण्ठ' शब्द के साथ 'श्वेतवस्त्र' विशेषण नहीं है, न ही 'अपदान' में वर्णित ३६वीं गाथा में सेतवत्थ (श्वेतवस्त्रवाले) शब्द के साथ निगण्ठ विशेष्य है। इसी प्रकार धम्मपद-अट्ठकथा में वर्णित 'कुण्डलकेसी' वृत्तान्त में बतलाया गया है कि भद्रा परिव्राजकों के आश्रम में जाकर प्रव्रज्या ग्रहण करती है। इस तरह तीनों कथाओं में भद्रा को परिव्राजक, निर्ग्रन्थ
और श्वेतपट , इन तीन अलग-अलग सम्प्रदायों में प्रव्रज्या ग्रहण करते हुए और बाद में उन्हें छोड़कर बौद्धमत में प्रव्रजित होते हुए चित्रित किया गया है। इसका प्रयोजन था बौद्धमत के अतिरिक्त अन्य मतों को हीन सिद्ध करना।
किन्तु मुनि श्री नगराज जी ने 'अपदान' की कथा में वर्णित श्वेतवस्त्र-मुनियों और थेरीगाथा-अट्ठकथा की कथा में उल्लिखित निर्ग्रन्थ-मुनियों को अभिन्न समझकर यह मान लिया है कि बौद्धसाहित्य में श्वेतवस्त्रधारी निर्ग्रन्थ मुनियों का उल्लेख है। उनकी यह धारणा भ्रान्तिपूर्ण है, क्योंकि 'वस्त्रधारी' शब्द और 'निर्ग्रन्थ' शब्द दिन और रात के समान परस्परविरुद्धार्थी हैं। पूर्व में जैन, वैदिक और बौद्ध साहित्य, संस्कृतसाहित्य एवं शब्दकोशों से उद्धरण देकर सिद्ध किया गया है कि 'निर्ग्रन्थ' शब्द ऐकान्तिकरूप से नग्नमुद्राधारी मुनि का वाचक है। तथा कदम्बवंशीय राजा श्रीविजयशिवमृगेशवर्मा का देवगिरि-ताम्रपत्रलेख (क्र. ९८) इस तथ्य का पक्का सबूत है कि भारतीय इतिहास में 'निर्ग्रन्थ' और 'श्वेतपट' नाम के परस्परभिन्न दो सम्प्रदाय प्रसिद्ध थे, क्योंकि ऐतिहासिक प्रसिद्धि के बिना अभिलेखों में उनका भिन्न सम्प्रदायों के रूप में उल्लेख नहीं हो सकता। और जैसा राजा श्रीविजयशिवमृगेशवर्मा के ताम्रपत्रलेख में उनकी भिन्नता का उल्लेख है, वैसा किसी भी अभिलेख एवं भारत के किसी भी सम्प्रदाय के साहित्य में उनके एकत्व का उल्लेख उपलब्ध नहीं है। अर्थात् जो निर्ग्रन्थ है, उसके श्वेतपट होने का उल्लेख उपलब्ध नहीं है और जो श्वेतपट है, उसके निर्ग्रन्थ होने का उल्लेख अनुपलब्ध है। अतः मुनि श्री नगराज जी की यह धारणा कि बौद्धसाहित्य में श्वेतवस्त्रधारी निर्ग्रन्थ मुनियों का उल्लेख है, इतिहासविरुद्ध धारणा है।
तथा भद्रा को जो 'एकशाटी' विशेषण दिया गया है, वह भी इस बात का प्रमाण है कि भद्रा दिगम्बरजैन-सम्प्रदाय की आर्यिका पद पर दीक्षित हुई थी, क्योंकि दिगम्बर-सम्प्रदाय में ही आर्यिकाओं के लिए केवल एक साड़ी पहनने का नियम है। दिगम्बर-सम्प्रदाय की क्षुल्लिका भी दो वस्त्रधारण करती है। तथा श्वेताम्बर-सम्प्रदाय में आर्यिका का जिनकल्पी होना निषिद्ध है, और जब उस सम्प्रदाय के जिनकल्पी
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