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३४२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०४/प्र०२ से रहित कहकर अमुनि घोषित कर देती है और प्रणाम किये बिना ही चली जाती है, इससे भी सिद्ध हो जाता है कि उत्तरकालीन बौद्धसाहित्य में भी निर्ग्रन्थमुनि नग्नरूप में ही वर्णित हैं।
निर्ग्रन्थ में अवास्तविक आचरण का चित्रण बुद्ध के प्रति विशाखा की अनन्य भक्ति दर्शाने के लिए निर्ग्रन्थों के प्रति उसका तीव्र घृणाभाव दर्शाना आवश्यक था। इसका अवसर उपस्थित करने के लिए धम्मपदअट्ठकथा के कर्ता बुद्धघोष ने निर्ग्रन्थों को ऐसा आचरण करते हुए दिखाया है, जो वास्तविकता के विरुद्ध है। निर्ग्रन्थ मुनि भोजन का निमन्त्रण स्वीकार नहीं करते, अपितु नियत समय पर आहार के लिए स्वयं ही श्रावकों के घरों के सामने से निकलते हैं। उस समय जो भी श्रावक उनका भक्तिपूर्वक प्रतिग्रहण करता है और उनके द्वारा ग्रहण किया गया अभिग्रह (वृत्तिपरिसंख्यान आहारसम्बन्धी नियमविशेष) यदि वहाँ पूर्ण होता है, तो उसी के घर में खड़े होकर पाणिपात्र में आहार ग्रहण करते हैं। किन्तु बुद्धघोष ने लिखा है कि मिगार श्रेष्ठी ने पाँच सौ निर्ग्रन्थों को भोजन के लिए आमन्त्रित किया और घर में प्रवेश कराया। यदि बुद्धघोष निर्ग्रन्थों को भोजन का निमन्त्रण स्वीकार करनेवाला न दर्शाते, तो पाँच सौ मुनियों का एक घर में आहार के लिए एक साथ प्रवेश युक्तिसंगत सिद्ध न होता और वैसा न होने पर विशाखा के द्वारा पाँच सौ निर्ग्रन्थों का अपमान किया जाना संभव न होता। अतः इसे संभव बनाने के लिए बुद्धघोष ने निर्ग्रन्थों को निमंत्रण देने पर भोजन के लिए आनेवाले साधुओं के रूप में चित्रित किया है, जो वास्तविकता के विरुद्ध है। ऐसा एक उदाहरण धम्मपद-अट्ठकथा की 'निगंठवत्थु अट्ठकथा' में भी मिलता है। कथा इस प्रकार है
"अलज्जितायेति इमं धम्मदेसनं सत्था जेतवने विहरन्तो निगण्ठे आरब्भ कथेसि। एकस्मिहि दिवसे भिक्खू निगण्ठे दिस्वा कथं समुट्ठापेसुं , "आवुसो, सब्बसो अप्पटिच्छन्नेहि अचेलकेहि इमे निगण्ठा वरतरा, ये एकं पुरिमपस्सम्पि ताव पटिच्छादेन्ति, सहिरिका मजे एते" ति। तं सुत्वा निगण्ठा "न मयं एतेन कारणेन पटिच्छादेम, पंसुरजादयो पन पुग्गला एव, जीवितिन्द्रियपटिबद्धा एव, ते नो भिक्खाभाजनेसु मा पतिंसूति इमिना कारणेन पटिच्छादेमा" ति वत्वा तेहि सद्धिं वादपटिवादवसेन बहुं कथं कथेसुं। भिक्खू सत्थारं उपसङ्कमित्वा निसिन्नकाले तं पवत्तिं आरोचेसुं। सत्था, "भिक्खवे, अलज्जितब्बेन लज्जित्वा, लज्जितब्बेन अलज्जमाना नाम दुग्गतिपरायणाव होन्ती" ति वत्वा धम्मं देसन्तो इमा गाथा अभासि
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