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ग्रन्थकथा
[सैंतालीस] __इस ग्रन्थ का प्रकाशन माननीय श्री अशोक जी पाटनी, आर० के० मार्बल्स, किशनगढ़ (राज.) के उदार आर्थिक सहयोग से सर्वोदय जैन विद्यापीठ, आगरा (उ.प्र.) ने किया है। इस हेतु श्री पाटनी जी एवं विद्यापीठ के न्यासीगण साधुवाद के पात्र हैं। परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी के आशीर्वाद से लिखा गया यह ग्रन्थ इस संस्था से प्रकाशित होनेवाली प्रथम कृति है। यह विद्यापीठ का सौभाग्य है। आशा है प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रकाशन विद्यापीठ की कीर्ति में चार चाँद लगायेगा।
ग्रन्थ का लिप्यङ्कन (कम्पोजिंग) श्री श्रीपाल जी 'दिवा', भोपाल के समता प्रेस में श्री कैलाशचन्द्र राजपूत के द्वारा यत्नपूर्वक, उत्तमरीति से किया गया है। मैं इन दोनों बन्धुओं का भी हृदय से धन्यवाद करता हूँ।
ग्रन्थ के आवरण पृष्ठ की रूपरेखाएँ श्री संजय जैन 'मैक्स' इन्दौर एवं जयपुर प्रिंटर्स जयपुर के स्वामी श्री प्रमोदकुमार जैन ने निर्मित कराकर विचार हेतु उपलब्ध करायीं, तथा हड़प्पा-जिनप्रतिमा के चित्र की उपलब्धि श्री अजितप्रसाद जैन एवं श्री जे० के० जैन दिल्ली के द्वारा तथा लोहानीपुर-जिनप्रतिमा के चित्र की प्राप्ति श्री रतनलाल जी पटना (बिहार) के प्रयत्न से हुई है। इन मित्रों के प्रति आभार प्रकट करता हूँ। श्री राजेश जैन, राजकुमार स्टूडियो, गंजीपुरा, जबलपुर ने प० पू० आचार्य श्री विद्यासागर जी का भव्य छायाचित्र ग्रन्थ में प्रकाशनार्थ उपलब्ध कराया, इस हेतु मैं उनका भी आभारी हूँ।
ग्रन्थ का मुद्रण दीप प्रिण्टर्स नयी दिल्ली के स्वामी श्री मनोहरलाल जी जैन ने बडी रुचि और निष्ठा से किया है। उन्होंने लिप्यङ्कन-पद्धति के कई दोषों का परिमार्जन भी किया है। आवरणपृष्ठ को अन्तिम रूप भी उनके ही द्वारा दिया गया है। इस मनोहर कार्य के लिए मैं उनके प्रति भी आभार प्रकट करता हूँ।
मैं सन् १९९८ से 'मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरा न कोई' की भावना से ग्रन्थलेखन में जुटा रहा हूँ। इन दस वर्षों में मैंने सिर भी ऊपर नहीं उठाया। नींद उतनी ही ली है, जितनी स्वस्थ रहने के लिए जरूरी थी। कभी-कभी उसमें भी कटौती कर दी। मित्रों और सम्बन्धियों से नाता-सा टूट गया। विद्वत्संगोष्ठियों में प्राय: जाना बन्द कर दिया। इसी बीच पूज्य गुरुवर आचार्य श्री विद्यासागर जी एवं अन्य गुरुओं और मित्रों की कृपा से जिनभाषित (मासिक) के सम्पादन का उत्तरदायित्व भी इन कन्धों पर आ गया, जिसके प्रथम अंक का लोकार्पण दि० जैन सिद्धक्षेत्र कुण्डलपुर (दमोह, म.प्र.) में बड़े बाबा भगवान् ऋषभदेव की १५०० वर्ष प्राचीन प्रतिमा के प्रथम महामस्तकाभिषेक एवं पंचकल्याणक-गजरथ महोत्सव के ऐतिहासिक अवसर पर परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी एवं उनके विशाल श्रीसंघ की मंगल सन्निधि एवं शुभाशीर्वाद
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