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३३४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०४/प्र०२ के अनुयायी श्रावक का पुत्र था। यह इस बात का प्रमाण है कि बौद्ध-त्रिपिटकसाहित्य में निर्ग्रन्थसम्प्रदाय के श्रावकों को भी 'निर्ग्रन्थ' शब्द से सम्बोधित किया गया है।
इसका बहुत स्पष्ट प्रमाण जातक-अट्ठकथा (तृतीय भाग) की चूलकालिङ्गजातकवण्णना में मिलता है। इसमें न केवल निर्ग्रन्थ श्रावक को 'निर्ग्रन्थ' शब्द से अभिहित किया गया है, अपितु निर्ग्रन्थश्राविका के लिए भी 'निर्ग्रन्थी' शब्द व्यवहृत हुआ है। यथा
"विवरथिमासं द्वारन्ति इदं सत्था जेतवने विहरन्तो चतुन्नं परिब्बाजिकानं पब्बजं आरब्भ कथेसि। वेसालियं किर लिच्छविराजूनं सत्त सहस्सानि सत्त सतानि सत्त च लिच्छवी वसिंसु। ते सब्बेपि पुच्छापटिपुच्छाचित्तका अहेसुं। अथेको पञ्चसु वादसतेसु ब्यत्तो निगण्ठो वेसालियं सम्पापुणि, ते तस्य सङ्गहं अकंसु। अपरापि एवरूपा निगण्ठी सम्पापुणि। राजानो द्वेपि जने वादं कारेसुं , उभोपि सदिसाव अहेसुं। ततो लिच्छवीनं एतदहोसि "इमे द्वेपि पटिच्च उप्पन्नो पुत्तो ब्यत्तो भविस्सती" ति। तेसं विवाहं कारेत्वा द्वेपि एकतो वासेसुं। अथ नेसं संवासमन्वाय पटिपाटिया चतस्सो दारिकायो एको च दारको जायि। दारिकानं 'सच्चा', 'लोला', 'अवधारिका', 'पटिच्छादा' ति नामं अकंसु दारकस्य 'सच्चको' ति। ते पञ्चपि जना विश्रुतं पत्ता मातितो पञ्च वादसतानि, पितितो पञ्च वादसतानीति वादसहस्सं उग्गण्हिंसु। मातापितरो दारिकानं एवं ओवदिंसु-"सचे कोचि गिही तुम्हाकं वादं भिन्दिस्सति, तस्स पादपरिचारिका भवेय्याथ। सचे पब्बजितो भिन्दिस्सति, तस्स सन्तिके पब्बजेय्या था" ति। अपरभागे मातापितरो कालमकंसु। तेसु कालकतेसु सच्चकनिगण्ठो तत्थेव वेसालियं लिच्छवीनं सिप्पं सिक्खापेन्तो वसि।" ९२
यह केवल प्रासंगिक पालिमूल यहाँ दिया गया है। सम्पूर्ण कथा का श्री भदन्त आनन्द कौसल्यायन-कृत हिन्दी अनुवाद नीचे दिया जा रहा है। उन्होंने इसे चुल्लकालिंगजातक नाम से वर्णित किया है।
चुल्लकालिङ्ग-जातक वैशाली में सात हजार सात सौ सात लिच्छवी-राजा रहते थे। वे सभी शास्त्रार्थकुशल थे। एक बार एक पाँच सौ वादों (मतों) में पंडित निर्ग्रन्थ वैशाली पहुंचा। उन्होंने उसका आदर-सत्कार किया। एक दूसरी उसी तरह की निर्ग्रन्थी भी आ पहुँची। राजाओं ने दोनों का शास्त्रार्थ कराया। दोनों बराबर रहे। तब लिच्छवियों ने
९२. चूळकालिङ्गजातकवण्णना/खुद्दकनिकाये जातक-अट्ठकथा / भा.३/पृ. १-२/ विपश्यना विशोधन
विन्यास इगतपुरी, सन् १९९८ ई.।
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