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३१४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ० ४ / प्र०२
लेती है । प्रव्रज्या - ग्रहण करने का वर्णन निम्नलिखित गाथाओं में किया गया है
तदाहं पातयित्वान गिरिदुग्गम्हि सन्तिकं सेतवत्थानं उपेत्वा पब्बजिं
सत्तुकं । अहं ॥ ३६ ॥
सण्डासेन च केसे मे लुञ्चित्वा सब्बसो पब्बजित्वान समयं आचिक्खिंसु
तदा । निरन्तरं ॥ ३७ ॥
अनुवाद - " तब मैंने दुर्गम पर्वत पर से सत्तुक (नामक चोर पति) को नीचे ढकेलकर मार डाला और श्वेतवस्त्रधारियों के पास जाकर प्रव्रजित हो गयी। उन्होंने सँड़सी से मेरे सभी बालों का लुंचन कर मुझे प्रव्रज्या प्रदान की, धर्मोपदेश देने लगे ।"
पश्चात् निरन्तर
यहाँ द्रष्टव्य है कि श्वेताम्बर साधुओं को केवल 'श्वेतवस्त्रधारी' (सेतवत्थानं= श्वेतवस्त्राणाम्, श्वेतानि वस्त्राणि येषां तेषाम् ) शब्द से अभिहित किया गया है। उसके साथ 'निगण्ठ' विशेष्य का प्रयोग नहीं है। इससे सिद्ध है कि प्राचीन बौद्धसाहित्य में श्वेताम्बर मुनि 'श्वेतवस्त्र' या 'श्वेतपट' शब्द से प्रसिद्ध थे, 'निगण्ठ' (निर्ग्रन्थ) शब्द से नहीं। 'निगण्ठ' शब्द दिगम्बरजैन मुनियों के लिए ही प्रयुक्त होता था, जैसा कि उनके लिए अहिरिक (अहीक ) शब्द के प्रयोग से स्पष्ट है।
श्वेताम्बर मुनियों के लिए 'श्वेतवस्त्र' या 'श्वेतपट' नाम के प्रयोग की परम्परा उनकी उत्पत्ति के समय से ही देखने को मिलती है, जिसके प्रथम दर्शन प्राचीन बौद्धसाहित्य के उपर्युक्त ग्रन्थ में होते हैं ।
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बुद्धकालीन छह अन्यतीर्थिकों में भगवान् महावीर
गौतम बुद्ध के समय में बौद्धसम्प्रदाय के अतिरिक्त छह अन्य सम्प्रदाय भी थे, जिनके प्रवर्तकों के नाम बौद्धग्रन्थ 'दीघनिकाय' में इस प्रकार बतलाये गये हैं
"एकमन्तं निसिन्नो खो सुभद्दो परिब्बाजको भगवन्तं एतदवोच - "येमे, भो गोतम, समणब्राह्मणा सङ्घिनो गणिनो गणाचरिया जाता यसस्सिनो तित्थकरा साधुसम्मता बहुजनस्स, सेय्यथिदं - पूरणो कस्सपो, मक्खलि गोसालो, अजितो केसकम्बलो, पकुधो कच्चायनो, सञ्जयो बेलट्ठपुत्तो, निगण्ठो नाटपुत्तो, सब्बेते सकाय पटिञ्ञाय अब्भज्ञिसु ? सब्बेव न अब्भञ्ञिसु ? उदाहु एकच्चे अब्भञ्ञिसु एकच्चे न अब्भञ्ञिसु' ति?" (सुभद्दपरिब्बाजकवत्थु / महापरिनिब्बानसुत्त / दीघनिकायपालि / भा. २ / पृ. ४०२) ।
अनुवाद - " एक ओर बैठे उस सुभद्र परिव्राजक ने भगवान् से प्रश्न किया— 'भो गौतम! सभी श्रमण-ब्राह्मण, संघी, गणी, गणाचार्य, ज्ञानी, यशस्वी, तीर्थंकर, समाज में सम्मानित, जैसे पूरण काश्यप, मक्खलि गोसाल, अजित केशकम्बल, प्रक्रुध
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