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अ०४/प्र०२
जैनेतर साहित्य में दिगम्बरजैन मुनियों की चर्चा / ३१३ साधुओं का कहीं उल्लेख नहीं है। सत्य यह है कि सम्पूर्ण बौद्धसाहित्य में 'निर्ग्रन्थ' शब्द से श्वेताम्बर साधुओं का उल्लेख कहीं भी नहीं मिलता। उनका उल्लेख 'श्वेतवस्त्र' (श्वेतपट) शब्द से हुआ है। इसका प्रमाण नीचे दिया जा रहा है। १.२. 'अपदान' ग्रन्थ में श्वेतवस्त्र मुनियों का उल्लेख
सुत्तपिटक में पाँच निकाय हैं : दीघनिकाय, मज्झिमनिकाय, संयुत्तनिकाय, अङ्गत्तरनिकाय और खुद्दकनिकाय। श्री भरतसिंह उपाध्याय ने पालिसाहित्य का इतिहास नामक ग्रन्थ में बतलाया है कि खुद्दकनिकाय प्रथम चार निकायों के बाद का प्रणयन या संकलन है (पृ.२००, २०२)। इस निकाय में सम्राट अशोक के समय में बुद्धपरिनिर्वाण के २३६ वर्ष बाद पाटलिपुत्र में हुई तृतीय संगीति तक परिवर्धन होते रहे (पृ.८५, २०२)। खुद्दकनिकाय में १५ ग्रन्थ हैं। इनमें भाषा और विषय दोनों की दृष्टि से धम्मपद, सुत्तनिपात, उदान और इतिवुत्तक कालक्रम की अपेक्षा पूर्ववर्ती हैं (पृ.२०३)। इनके बाद जातक और थेरथेरी गाथाओं का स्थान आता है (पृ.२०४)। तत्पश्चात् कालक्रम में बुद्धवंस, चरियापिटक, निद्देस, अपदान, पटिसम्भिदामग्ग, विमानवत्थु, पेतवत्थु एवं खुद्दकपाठ का स्थान है (पृ.२०७)। किन्तु इनमें जो अधिक उत्तरकालीन हैं, वे भी अशोक के काल (ई० पू० ३री शती) से उत्तरवर्ती नहीं हैं (पृ.२०४)। इनका लिपिबद्धीकरण अवश्य ईसापूर्व २९ में हुआ है।
उपर्युक्त ग्रन्थ के अनुसार अपदान (संस्कृत 'अवदान') अशोककालीन रचना है (पृ.२०६)। "यह खुद्दकनिकाय के उत्तरकालीन ग्रन्थों में से है। इसमें बौद्ध भिक्षुओं और भिक्षुणियों के पूर्वजन्म के महान् कृत्यों का वर्णन है। जातक के समान इसकी भी कहानी के दो भाग होते हैं : एक अतीत जन्मसम्बन्धी और दूसरा वर्तमान (प्रत्युत्पन्न) जीवन-सम्बन्धी। अपदान दो भागों में विभक्त है : थेर अपदान और थेरी अपदान। थेर अपदान में ५५ वर्ग हैं और प्रत्येग वर्ग में १० अपदान हैं। थेरी अपदान में ४ वर्ग हैं और प्रत्येक वर्ग में १० अपदान हैं। इसी ग्रन्थ पर संस्कृत बौद्धसाहित्य का अवदानसाहित्य अधिकांशतः आधारित है।" (पृ.२९८)।
अपदान ग्रन्थ के थेरी अपदान भाग में द्वितीय वर्गान्तर्गत तृतीय अपदान में भद्रा कुण्डलकेसी नामक युवती की प्रव्रज्याकथा का वर्णन है, जिसमें बतलाया गया है कि श्रेष्ठिपुत्री भद्रा, सत्तुक नामक एक चोर युवक से विवाह कर लेती है। लेकिन वह चोर युवक भद्रा की हत्या कर उसके आभूषण ले
तेकर भाग जाना चाहता है। इसके लिए वह बहाना बनाकर भद्रा को एक पर्वत पर ले जाता है। किन्तु, वहाँ भद्रा को उसकी दुरभिसन्धि का पता चल जाता है। अतः वह स्वयं ही उसे पर्वत से ढकेलकर मार डालती है और श्वेतवस्त्र-मुनियों के पास जाकर प्रव्रज्या ग्रहण कर
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