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३१२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०४/प्र०२ को अह्रीक कहे जाने का उदाहरण मिलता है। यथा
इमे अहिरिका सव्वे सद्धादिगुणवज्जिता। थद्धा सठा च दुप्पञ्चा सग्गमोक्खविबन्धका ॥ ८८॥ इति सो चिन्तयित्वान गुहसीवो नराधिपो।
पव्वाजेसि सकारट्ठा निगण्ठे ते असेसके ॥ ८९ ॥७२ बौद्ध नैयायिक कमलशील ने भी जैनों का 'अह्रीक' नाम से उल्लेख किया है-"अह्रीकादयश्चोदयन्ति" (स्याद्वादपरीक्षा प्र./ तत्त्वसंग्रह / पृ. ४८६)। 'वाचस्पति अभिधानकोष' में भी 'अह्रीक' शब्द का अर्थ 'दिगम्बरजैन मुनि' बतलाया गया है"अह्रीकः क्षपणके तस्य दिगम्बरत्वेन लज्जाहीनत्वात् तथात्वम्।" 'हेतुविन्दुतर्कटीका' में जैनमुनि के धर्म का निर्देश 'क्षपणक' और 'अह्रीक' नाम से हुआ है तथा श्वेताम्बराचार्य श्री वादिदेवसूरि ने अपने 'स्याद्वादरत्नाकर' ग्रन्थ (पृ.२३०) में दिगम्बर जैनों का उल्लेख 'अह्रीक' शब्द से किया है।३
इन उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है कि अंगुत्तरनिकाय में नग्नत्वजन्य निर्लज्जतारूप असद्धर्म (बौद्धों के अनुसार) के कारण ही निर्ग्रन्थों को अहिरिका (अह्रीक) कहा गया है। श्वेताम्बर मुनियों को 'अहिरिका' कहे जाने का कोई कारण ही नहीं है। अतः अंगुत्तरनिकाय जैसे प्राचीन बौद्धग्रन्थ में भी दिगम्बरजैन मुनियों के लिए ही 'निर्ग्रन्थ' शब्द का प्रयोग हुआ है। प्राचीन बौद्धसाहित्य में निर्ग्रन्थों के लिए अचेलक शब्द का भी व्यवहार हुआ है। अंगुत्तरनिकाय (भा.३) के 'छळभिजातिसुत्त' में पूरण कस्सप ने अचेलक साधुओं के श्वेतवस्त्रधारी श्रावकों को हरिद्राभिजातीय बतलाया है। ये अचेलक साधु आजीविक सम्प्रदाय के नहीं थे, क्योंकि आजीविकों को पूरण कस्सप ने उसी सुत्त में शुक्ल और परमशुक्ल अभिजातियों में वर्गीकृत किया है। अतः सिद्ध है कि उक्त अचेलक साधु निर्ग्रन्थ ही थे। तथा अंगुत्तरनिकाय (भा.३) के उसी 'छळभिजातिसुत्त' में श्वेतवस्त्रधारी श्रावक अचेलकों के श्रावक कहे गये हैं-"गिही ओदातवसना अचेलसावका" और दीघनिकाय (भा.३) के 'पासादिकसुत्त' में उन्हें निगण्ठनाटपुत्त का श्रावक बतलाया गया है-"निगण्ठस्स नाटपुत्तस्स सावका गिही ओदातवसना।" इससे भी सिद्ध है कि प्राचीन बौद्धसाहित्य में निर्ग्रन्थ साधुओं को नग्न ही माना गया है। ये इस बात के प्रमाण हैं कि प्राचीन बौद्धसाहित्य (त्रिपिटकों) में प्रचुरता से नग्न जैन साधुओं का उल्लेख मिलता है। अतः मुनि श्री कल्याणविजय जी का यह दावा मिथ्या सिद्ध हो जाता है कि बौद्धों के प्राचीन शास्त्रों में नग्न जैन
७२. कामताप्रसाद जैन : दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि / पा.टि./ पृ.५१ से उद्धृत। ७३. देखिए , कामताप्रसाद जैन : दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि / पृ. ४५ ।
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