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________________ अ० ४ / प्र० १ जैनेतर साहित्य में दिगम्बरजैन मुनियों की चर्चा / २९७ धारी) साधुओं की परम्परा का अन्त हो गया । केवल स्थविरकल्पी (कटिवस्त्रसहितवस्त्रपात्रधारी) साधुओं की परम्परा शेष रही । फलस्वरूप 'महाभारत' की रचना के समय (५०० ई० पू० से १०० ई० पू० ) श्वेताम्बर - सम्प्रदाय में केवल कटिवस्त्रसहितवस्त्रपात्रधारी साधुओं का ही अस्तित्व था । अतः यदि श्वेताम्बर जिनकल्प साधुओं को ‘विशेषावश्यकभाष्य' एवं 'प्रवचनपरीक्षा' के वचनों के विरुद्ध भी नग्न ( पुरुषचिह्न को खुला रखनेवाला) मान लिया जाय और उक्त ग्रन्थों में क्षपणकों की जो स्त्रीमुक्तिनिषेधक विशेषता बतलायी गयी है तथा संस्कृतसाहित्य में उनके मयूरपिच्छीधारण करने तथा धर्मवृद्धि का आशीर्वाद देने के जो लक्षण बतलाये गये हैं, उन्हें भी अस्वीकार कर क्षपणक का मनमाना लक्षण बना लिया जाय, तो भी 'महाभारत' की रचना के समय श्वेताम्बर - जिनकल्पी साधुओं का अस्तित्व नहीं था, इसलिए उन्हें 'क्षपणक' शब्द से अभिहित किये जाने का प्रश्न ही नहीं उठता। इन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि 'महाभारत' में 'नग्नक्षपणक' नाम से दिगम्बरजैन मुनि का ही उल्लेख है। २९ श्वेताम्बर साधु 'श्वेतपट' या 'सिताम्बर' नाम से प्रसिद्ध शिवमहापुराण में श्वेताम्बर साधु जैन - जैनेतरों में श्वेताम्बरसाधु 'श्वेतवस्त्र' या 'श्वेतपट' नाम से प्रसिद्ध थे, क्योंकि वे श्वेतवस्त्र धारण करते थे। सर्वप्रथम सम्राट् अशोक के समय में अथवा ई० पू० प्रथम शताब्दी में रचित माने जानेवाले बौद्धग्रन्थ अपदान में सेतवत्थ ( श्वेतवस्त्र) नाम से 'श्वेतपट' साधुओं का उल्लेख मिलता है। इसका विस्तार से वर्णन इसी अध्याय द्वितीय प्रकरण में द्रष्टव्य है । पाँचवीं शताब्दी ई० के कदम्बवंशीय राजा श्रीविजयशिवमृगेशवर्मा के ताम्रपत्रलेख में निर्ग्रन्थश्रमणसंघ के प्रतिपक्षी के रूप में श्वेतपटश्रमणसंघ की चर्चा हुई है। सातवीं शती ई० के आदि में बाणभट्ट द्वारा रचित ' कादम्बरी' और 'हर्षचरित' में 'शिखिपिच्छ - लाञ्छन' एवं 'नग्नाटक' विशेषणों से क्षपणकों (दिगम्बरजैन मुनियों) का तथा 'श्वेतपट' नाम से श्वेताम्बर मुनियों का उल्लेख किया गया है। छठी शती ई० के दिगम्बराचार्य जोइन्दुदेव ने 'परमात्मप्रकाश' में 'क्षपणक' और 'श्वेतपट' (सेवडउ ) इन दो सम्प्रदायों के मुनियों का नाम लिया है। 'विशेषावश्यकभाष्य' के वृत्तिकार मलधारी हेमचन्द्रसूरि ने २५८५वीं गाथा की वृत्ति में एक पुरानी गाथा उद्धृत की है, उसमें भी ' क्षपणक', 'बुद्ध' और 'श्वेतपट' (सेयवडो) इन तीन सम्प्रदायों के मुनियों का कथन किया गया है। इन सबके प्रमाण पूर्व में 'महाभारत' शीर्षक के अन्तर्गत दिये जा चुके हैं । ४७३ ई० के विमलसूरिकृत 'पउमचरिय' में 'सिताम्बर' Jain Education International For Personal & Private Use Only wwww.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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