SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 489
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अ०४/प्र०१ जैनेतर साहित्य में दिगम्बरजैन मुनियों की चर्चा / २९५ अतः दिगम्बरजैन-परम्परा वैदिककाल (कम से कम १५०० ई० पू०) से पूर्ववर्ती सिद्ध होती है। २८ 'क्षपणक' का अर्थ श्वेताम्बर-जिनकल्पी मुनि नहीं 'महाभारत' के उत्तङ्कोपाख्यान में जो 'नग्नक्षपणक' का वर्णन है उसका प्रमाण देते हुए श्वेताम्बराचार्य श्री विजयानन्द सूरीश्वर 'आत्माराम' जी (ई० सन् १९२० के लगभग) ने भी अपने ग्रन्थ 'तत्त्वनिर्णयप्रासाद' में प्रातिपादित किया है कि "जैनमत वेदसंहिता और वेदव्यास से पहले का सिद्ध होता है।'(पृष्ठ ५१४)। किन्तु जिस 'नग्नक्षपणक' के उल्लेख के आधार पर यह सिद्ध होता है, उसे उन्होंने दिगम्बरजैन मुनि न मानकर श्वेताम्बर-जिनकल्पी मुनि माना है, क्योंकि वे भी नग्न रहते थे। श्री 'आत्माराम' जी लिखते हैं "इस लेख से भी यही सिद्ध होता है कि जैनमत वेदसंहिता से भी पूर्व विद्यमान था, क्योंकि 'नग्नक्षपणक' इस शब्द का यह अर्थ है क्षपणक नाम का साधु। साथ में 'नग्न' इस विशेषण से जैनमत का साधु सिद्ध होता है। जैनमत में दो प्रकार के साधु होते हैं : स्थविरकल्पी और जिनकल्पी। जिनकल्पी आठ प्रकार के होते हैं, जिनमें कई जिनकल्पी ऐसे होते हैं, जो रजोहरण, मुखवस्त्रिका के बिना अन्य कोई वस्त्र नहीं रखते हैं और प्रायः जंगल में ही रहते हैं। तथा टीकाकार नीलकण्ठ जी ने भी 'क्षपणक' पद का अर्थ पाषंडभिक्षु करा है।"(तत्त्वनिर्णयप्रासाद / पृ.५१४)। 'आत्माराम' जी की इस मान्यता का कारण यह है कि वे आवश्यकनियुक्ति आदि के वर्णनानुसार दिगम्बरजैनमत की उत्पत्ति बोटिक शिवभूति के द्वारा वीर-निर्वाण संवत् ६०९ (ई० सन् ८२) में की गई मानते हैं। (त.नि.प्रा./पृ.५४२-५४३)। अतः इसके बहुत पहले रचे गये 'महाभारत' में जो 'नग्नक्षपणक' का उल्लेख मिलता है, उसे दिगम्बरजैन मुनि मानने से आवश्यकनियुक्ति का वचन मिथ्या सिद्ध होता है। इस धर्मसंकट के कारण उन्हें महाभारतोल्लिखित 'नग्नक्षपणक' को श्वेताम्बर-जिनकल्पी मुनि कहने के लिए बाध्य होना पड़ा। किन्तु उनकी यह मान्यता सर्वथा प्रमाणविरुद्ध है। पर्व (शीर्षक ५) में ऐसे अनेक उद्धरण प्रस्तुत किये गये हैं, जिनसे सिद्ध होता है कि दिगम्बर, श्वेताम्बर और वैदिकपरम्परा के साहित्य, संस्कृतसाहित्य एवं शब्दकोशों में 'नग्नक्षपणक' शब्द दिगम्बरजैन मुनि के लिए ही प्रयुक्त किया गया है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि स्वयं श्वेताम्बरग्रन्थों में क्षपणक को स्त्रीमुक्ति-विरोधी दिगम्बर जैन मुनि कहा गया है, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy