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अ०४/प्र०१
जैनेतर साहित्य में दिगम्बरजैन मुनियों की चर्चा / २८५ इसी रीति से उसकी मृत्यु का वर्णन किया गया है। किन्तु , पद्ममहापुराण में उसके वध का वर्णन नहीं है, अपितु यह वर्णन है कि ऋषियों ने उसके दाहिने हाथ का मन्थन किया, जिससे उसके पृथु नामक पुत्र की उत्पत्ति हुई। वह अत्यन्त ज्ञानी और दयालु था। उसके पुण्यप्रसाद से राजा वेन धर्म और अर्थ का ज्ञाता हो गया और चक्रवर्तीपद प्राप्त कर उसका उपभोग करने के बाद भगवान् विष्णु की कृपा से वैष्णवलोक में पहुँच गया। (पद्ममहापुराण / भाग २/ भूमिखण्ड/अध्याय ३८ श्लोक ३८-४१)।
इन अनेक पुराणों और 'महाभारत' में राजा वेन की कथा वर्णित होने से सिद्ध है कि वह एक प्रसिद्ध और उल्लेखनीय चरित्रवाला राजा था। उसके यज्ञादिवैदिकधर्मविरोधी चरित्र से ज्ञात होता है कि उसने जैनधर्म स्वीकार कर लिया था। इसकी पुष्टि उपर्युक्त वैदिक पद्ममहापुराण से होती है। किन्तु उक्त पुराण के कर्ता ने जैनधर्म को हेय सिद्ध करने के लिए एक काल्पनिक कथा गढ़कर उसे इस तरह प्रस्तुत किया है, जैसे वह धर्म नहीं, अपितु पाप हो और जैसे राजा वेन ने उसे जानबूझकर ग्रहण नहीं किया था, अपितु सुशंख ऋषि के पूर्वशाप-वश बुद्धि भ्रष्ट हो जाने के कारण ग्रहण किया था। (वैदिक) पद्ममहापुराण के कर्ता ने पद्ममहापुराण (भाग २/खण्ड २-भूमिखण्ड / अध्याय ३७-३८) में वेन-कथा का वर्णन इस प्रकार किया है
जब अंग का पुत्र और स्वायंभुव मनु का वंशज राजा वेन शासन कर रहा था तब एक पुरुष छद्मलिंग धारण करके आया। उसका स्वरूप नग्न था, शरीर विशाल था, सिर मुड़ा हुआ था और देह से महाप्रभा प्रस्फुटित हो रही थी। उसकी काँख में मयूरपिच्छी दबी हुई थी, हाथ में नारियल से निर्मित कमंडलु था और वह वैदिक धर्म में दोष दर्शानेवाला असत् शास्त्र पढ़ रहा था
पुरुषः कश्चिदायातश्छद्मलिङ्गधरस्तदा। नग्नरूपो महाकायः शिरोमुण्डो महाप्रभः॥ २/२/३७/५॥ मार्जनी शिखिपत्राणां कक्षायां स हि धारयन्। गृहीतं पानपात्रं तु नारिकेलमयं करे॥ २/२/३७/६॥ पठमानो सच्छास्त्रं वेदधर्मविदूषकम्।
यत्र वेनो महाराजस्तत्रायातस्त्वरान्वितः॥ २/२/३७/७॥ वह पापी, राजा वेन की राजसभा में प्रविष्ट हो गया। उसे देखकर वेन ने प्रश्न किया-"तुम कौन हो? यहाँ क्यों आये हो? तुम्हारा धर्म क्या है? तुम्हारा आचार क्या है? सब बतलाओ।" तब वह पुरुष उत्तर देता है
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