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२८२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
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कादम्बरी - हर्षचरित (७वीं शती ई० ) में क्षपणक, आर्हत, नग्नाटक, मयूरपिच्छधारी
सुप्रसिद्ध संस्कृतगद्यकवि बाणभट्ट राजा हर्ष (६०६ - ६४७ ई०) के समकालीन थे। इन्होंने अपने प्रसिद्ध गद्यकाव्य 'कादम्बरी' और 'हर्षचरित' में दिगम्बर जैन मुनियों के उल्लेख किये हैं। कादम्बरी के पूर्वभाग में शबरसेना का वर्णन करते हुए बाणभट्ट ने मोरपंख धारण किये हुए शबरों की उपमा मयूरपिच्छी धारण करनेवाले दिगम्बरजैन मुनियों से दी है - "कैश्चित् क्षपणकैरिव मयूरपिच्छधारिभिः।”४५
टीकाकार श्वेताम्बरचार्य श्री भानुचन्द्रगणी ने इसकी व्याख्या करते हुए लिखा है - " क्षपणकैरिव दिगम्बरैरिव मयूराणां बर्हिणां पिच्छानि छदानि धरन्तीत्येवंशीला धारिणस्तैः । भिल्ला अपि हतमयूरपिच्छधारिणो भवन्तीति श्लेषः ।"
अ०४ / प्र० १
आचार्य रामनाथ शर्मा 'सुमन' एवं राजेन्द्र कुमार शास्त्री ने भी ऐसी ही व्याख्या की है - "कैश्चित् क्षपणकैः इव जैनैः दिगम्बरैः इव । मयूरपिच्छवाहिभिः = मयूराणां शिखिनां पिच्छानि कलापान् वहन्ति धारयन्ति तच्छीलाः तैः । " ( कादम्बरी / प्रकाशकसाहित्य भण्डार, मेरठ) ।
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हर्षचरित (चौखम्बा विद्याभवन वाराणसी १९९८ ई०) में भी कई जगह दिगम्बरजैन मुनियों का निर्देश किया गया है - " जैनैः आर्हतैः पाशुपतैः पाराशरिभिः ।" (उच्छ्वास २ / पृ.१०३) । “शिक्षितक्षपणकवृत्तय इव वनमयूरपिच्छचयानुच्चिन्वन्तः ।" (उच्छ्वास २/ पृ.८३-८४)। “अभिमुखमाजगाम शिखिपिच्छलाञ्छनो नग्नाटकः ।" (उच्छ्वास ५/पृ. २६१ - २६२) ।
इन उद्धरणों में बाणभट्ट ने दिगम्बरजैन मुनियों को 'मयूरपिच्छधारी', 'क्षपणक' 'आर्हत', 'जैन' और 'नग्नाटक' (नग्नभ्रमण करनेवाला) शब्दों से निर्दिष्ट किया है।
हर्षचरित के निम्नलिखित कथन में दिगम्बरजैन मुनियों को 'आर्हत' नाम से तथा श्वेताम्बरमुनियों को 'श्वेतपट' नाम से वर्णित किया है - " तरुमूलानि निषेवमाणैर्वीतरागैरार्हतैर्मस्करिभिः श्वेतपटैः पाण्डुरभिक्षुभिर्भागवतैर्वर्णिभिः केशलुञ्चनैः कापिलैजैनैर्लोकायतिकैः ।" (उच्छ्वास / ८ / पृ.४२२-४२३) ।
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श्री शङ्करकवि ने इसकी व्याख्या इस प्रकार की है - " अर्हन्देवता येषां ते आर्हतास्तैर्नग्नक्षपणकैः । मस्करिभिः परिव्राजकैः । श्वेतपटैः श्वेतोर्णाकम्बलिवासोभिः नग्नक्षपणकभेदैः । पाण्डुरभिक्षुभिस्त्यक्तकाषायैः । "
४५. कादम्बरी / पूर्वभाग / पृ.१०६ / प्रकाशक- मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली ।
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