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अ०४/प्र०१
जैनेतर साहित्य में दिगम्बरजैन मुनियों की चर्चा / २८१
१८ योग के आद्यप्रवर्तक भगवान् ऋषभदेव भागवतपुराण एक और महत्त्वपूर्ण तथ्य पर प्रकाश डालता है, वह यह कि भगवान् ऋषभदेव ही योगविद्या के आद्य प्रवर्तक थे। इस पुराण में कहा गया है कि भगवान् विष्णु ने वातरशन (दिगम्बर) ऋषियों के धर्मों को प्रकट करने के लिए भगवान् ऋषभदेव के रूप में अवतार लिया था। उन्होंने पारमहंस्यधर्म और योगियों को साम्परायविधि की शिक्षा दी थी
"पारमहंस्यधर्ममुपशिक्षमाणः।" (५/५/२८)। "योगिनां साम्परायविधिमनुशिक्षयन्।" (५/६/६)।
"यो वै चचार समदृग्जडयोगचर्याम्।" (२/७/१०)। श्रीमद्भागवतपुराण में भगवान् ऋषभदेव को योगेश्वर और नानायोगचर्याचरण कहा गया है
"भगवानृषभदेवो योगेश्वरः।" (५/४/३)।
"नानायोगचर्याचरणो भगवान् कैवल्यपतिर्ऋषभो---।" (५/५/३५) । भगवान् ऋषभदेव के ज्येष्ठपुत्र भरत को भी 'महायोगी' विशेषण से विभूषित किया गया है-"महायोगी भरतो ज्येष्ठः" (५/४/९)।
भगवान् ऋषभदेव का दूसरा नाम 'आदिनाथ' है, क्योंकि वे जैनपरम्परा के चौबीस तीर्थंकरों में आदि तीर्थंकर हैं। इन आदिनाथ ऋषभदेव को वैदिकपरम्परा के प्रसिद्ध योगशास्त्र हठयोगप्रदीपिका में हठयोगविद्या के उपदेशक होने के कारण नमस्कार किया गया है
श्री आदिनाथाय नमोऽस्तु तस्मै, येनोपदिष्टा हठयोगविद्या। विभ्राजते प्रोन्नतराजयोगमारोढुमिच्छोरधिरोहिणीव॥४
अनुवाद-"मैं श्री आदिनाथ को नमस्कार करता हूँ , जिन्होंने उस हठयोगविद्या की शिक्षा दी, जो उन्नत राजयोग पर आरोहण के लिए नसैनी के समान है।"
४४. श्री हेमचन्द्र मोदी : 'योगमार्ग'/'अनेकान्त' वर्ष १/ किरण ८, ९, १० पृ. ५३७-५३८।
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