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ग्रन्थकथा
[इकतालीस] ग्रन्थ उपलब्ध कराने में बुक्स वर्ल्ड, भोपाल (म.प्र.) के स्वामी भाई श्री अनेकान्त जैन का योगदान भी अत्यन्त सराहनीय रहा है। वे इस बात से प्रसन्न थे कि मैं आचार्यश्री की आज्ञा से एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिख रहा हूँ। अतः उन्होंने स्वयं ही आग्रह किया कि मुझे सन्दर्भ हेतु जिन ग्रन्थों की आवश्यकता हो, मैं नि:संकोच कहूँ , वे मँगवाकर देंगे। और मेरे बतलाने पर उन्होंने वैदिक और बौद्ध साहित्य के अनेक ग्रन्थ बाहर से बुलवाकर मेरे पास भिजवा दिये, जिनमें 'महाभारत' के सभी भाग, लगभग सभी हिन्दू पुराण, अशोक के शिलालेख, 'पालि-हिन्दी-शब्दकोश', 'पाइअसद्द-महण्णवो', 'सर एम० मोनियर विलियम्स की संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी' आदि महत्त्वपूर्ण हैं। अनेकान्त जी के इस सहयोग के बिना भी प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रामाणिक बनना असम्भव था। अतः मैं उनका भी आभारी हूँ।
मेरे मित्र श्रीयुत श्रीपाल जी 'दिवा' जिनशासन की प्रभावना से सम्बन्धित मेरे कार्यों में सदा सहयोग करते रहते हैं। उन्होंने ग्रन्थ का महत्त्व समझकर इसके शीघ्र प्रणयन के लिये हार्दिक शुभकामनाओं और बाह्य व्यवस्थाओं के द्वारा मेरा मार्ग सुविधामय बनाने का प्रयत्न किया है। उनके प्रति भी आभार व्यक्त करता हूँ।
__प्राचीन जैन पाण्डुलिपियों और ग्रन्थों के संग्रह-संरक्षण में संलग्न 'अनेकान्त ज्ञानमन्दिर बीना, म.प्र.' के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी सन्दीप जी, ब्र० राकेश जी भाग्योदयतीर्थ सागर, डॉ० भागचन्द्र जी 'भागेन्दु' दमोह, डॉ० भागचन्द्र जी 'भास्कर' नागपुर, डॉ० शीतलचन्द्र जी जयपुर, डॉ० फूलचन्द्र जी 'प्रेमी' वाराणसी, डॉ० अरुणकुमार जी शास्त्री ब्यावर, डॉ. नरेन्द्रकुमार जी गाजियाबाद (उ.प्र.), डॉ. विजयकुमार जी (सम्पादक'श्रुतसंवर्धिनी') लखनऊ, डॉ० कपूरचन्द्र जी खतौली, माननीय श्री अशोक जी पाटनी किशनगढ़, श्री महावीरप्रसाद जी माचिसवाले दिल्ली एवं डॉ० श्रीमती अपर्णा चानोदिया भोपाल ने भी विभिन्न ग्रन्थों की प्राप्ति में सहयोग देकर मेरे मार्ग को प्रशस्त किया है। विभिन्न सज्जनों से ग्रन्थ हस्तगत कर मुझ तक पहुँचाने में श्री निकुंजभाई संघवी अहमदाबाद, श्री अभिनन्दन साँधेलीय पाटन (म.प्र.), सेठ राजेन्द्रकुमार जी जैन विदिशा, श्री जयकुमार 'निशान्त' टीकमगढ़ (म.प्र.), श्री कमलेश जैन 'भाईजान', श्री सतीशकुमार जैन 'नेता' एवं श्री कमलेश 'कक्का ' जबलपुर, श्री अनिलकुमार जैन नागपुर (महाराष्ट्र) तथा डॉ० जिनेन्द्रकुमार जी जैन सागर ने भी विशेष सहयोग किया है। एतदर्थ मैं इन सब सहयोगियों का ऋणी हूँ।
भोपालवासी ब्र० श्री शान्तिलाल जी जैन एवं सुश्री डॉ. निशा जैन ने मेरे ग्रन्थ के कम्प्यूटर-मुद्रित अध्यायों को ग्रीष्मकाल (२००६ ई०) में गुना (म.प्र.) में तथा चातुर्मास (२००६ ई०) में आरोन (म.प्र.) में स्थित पूज्य मुनि श्री अभयसागर जी के पास अवलोकनार्थ ले जाने एवं वापस लाने तथा मुनिश्री के आवश्यक परामर्श
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