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अ०४/प्र०१
जैनेतर साहित्य में दिगम्बरजैन मुनियों की चर्चा / २७१ गुप्त राजाओं का वर्णन है।५ इसमें कहा गया है कि श्राद्धकर्म को नग्नादि न देख पावें, नहीं तो श्राद्ध की वस्तुएँ न तो पितरों को प्राप्त होती हैं, न पितामहों को
नग्नादयो न पश्येयुः श्राद्धमेवं व्यवस्थितम्।
गच्छन्ति तैस्तैर्दृष्टानि न पितॄन्न पितामहान्॥२६ इस पर शंयु प्रश्न करते हैं कि नग्नादि कौन हैं? तब बृहस्पति उत्तर देते हैं
-------------------------------। यद्विश्राधकनिर्ग्रन्थाः शक्त्या जीवन्ति कर्पटाः॥ ये धर्मं नानुवर्तन्ते ते वै नग्नादयो जनाः।
---------------------॥ अनुवाद-"जो श्राद्धादि कार्यों का विरोध करनेवाले और वैदिक धर्म का अनुसरण न करनेवाले निर्ग्रन्थ (दिगम्बरजैन मुनि) आदि हैं, वे नग्नादि कहलाते हैं।"
इस प्रमाण से दिगम्बरजैनमत पाँचवी शताब्दी ई० से पूर्ववर्ती सिद्ध होता है।
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वराहमिहिर-बृहत्संहिता (४९० ई०) में नग्न, दिग्वासस् , निर्ग्रन्थ
प्रसिद्ध ज्योतिष शास्त्री वराहमिहिर का स्थितिकाल विद्वानों ने ४९० ई. के लगभग माना है।२८ उन्होंने अपने ग्रन्थ बृहत्संहिता के प्रतिष्ठापनाध्याय में लिखा है
विष्णोर्भागवतान् मगांश्च सवितुः शम्भोः सभस्मद्विजान् मातृणामपि मण्डलक्रमविदो विप्रान् विदुर्ब्रह्मणः। शाक्यान् सर्वहितस्य शान्तमनसो नग्नान् जिनानां विदु
र्ये यं देवमुपाश्रिताः स्वविधिना तैस्तस्य कार्याः क्रियाः॥ ६०॥२९ अनुवाद-"भागवत विष्णु के, मग सूर्य के, भस्माञ्चित द्विज शम्भु के, मातृमण्डलवेत्ता माताओं के, विप्र ब्रह्मा के, शाक्य बुद्ध के और नग्न 'जिन' के उपासक या प्रतिष्ठापक होते हैं। अतः जो जिस देव के उपासक हैं, वे अपनी-अपनी विधि से उसकी प्रतिष्ठादि क्रियाएँ करें।"
२५. वही / पृ.८१। २६. वायुपुराण ७८/२४। २७. वही / ७८ / ३०-३१। २८. डॉ. बलदेव उपाध्याय : संस्कृतसाहित्य का इतिहास / पृ.५०६ । २९. पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री : जैन साहित्य का इतिहास / पूर्वपीठिका / पृ.४७२।
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