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अ०४ / प्र०१
जैनेतर साहित्य में दिगम्बरजैन मुनियों की चर्चा / २६५ विनयसम्पन्न और माता-पिता के अत्यन्त प्रिय थे। उनके नाम सुनिये, वे इस प्रकार हैं-आग्नीध्र, अग्निबाहु, वपुष्मान्, द्युतिमान् मेधा, मेधातिथि, भव्य, सवन, पुत्र और ज्योतिष्मान्। प्रियव्रत के ये पुत्र अपने बल-पराक्रम के कारण विख्यात थे। इनमें मेधा, अग्निबाहु और पुत्र, ये तीन योगपरायण तथा अपने पूर्वजन्म का वृत्तान्त जाननेवाले थे। इनकी रुचि राज्य में नहीं थी। ये निर्मलचित्त, कर्मफल की इच्छा से रहित तथा समस्त विषयों में न्यायानुकूल प्रवृत्ति करनेवाले थे।
"हे मुनिश्रेष्ठ! राजा प्रियव्रत ने अपने शेष सात सुमहात्मा पुत्रों को सात द्वीप बाँट दिये। आग्नीध्र को जम्बूद्वीप और मेधातिथि को प्लक्ष नाम का दूसरा द्वीप दिया, शाल्मलीद्वीप में वपुष्मान् को अभिषिक्त किया, ज्योतिष्मान् को कुशद्वीप का राजा बनाया, द्युतिमान् को क्रौञ्चद्वीप का शासन सौंपा, भव्य को शाकद्वीप का स्वामित्व प्रदान किया और सवन को पुष्करद्वीप का अधिपति बनाया।
"हे मुनिसत्तम! उनमें जो जम्बूद्वीप के अधीश्वर आग्नीध्र थे, उनके प्रजापति के समान नौ पुत्र हुए : नाभि, किम्पुरुष, हरिवर्ष, इलावृत, रम्य, हिरण्वान् , कुरु, भद्राश्व और केतुमाल। हे विप्र! अब उनके लिए जम्बूद्वीप के जो विभाग किये गये, उन्हें सुनो। पिता (अग्नीध्र) ने दक्षिण की ओर का हिमवर्ष (जिसे अब भारतवर्ष कहते हैं) नाभि को दिया।---
"जिन नाभि को हिमवर्ष दिया गया था, उनके मरुदेवी से महाद्युतिमान् ऋषभ नामक पुत्र हुए। ऋषभ के सौ पुत्र हुए, जिनमें भरत ज्येष्ठ थे। पृथिवीपति ऋषभदेव ने धर्मपूर्वक राज्यशासन किया तथा विविध यज्ञ सम्पन्न किये, पश्चात् अपने वीर पुत्र भरत का राज्यभिषेक कर तप करने के लिए पुलहाश्रम चले गये। उन्होंने वहाँ भी वानप्रस्थविधि से रहते हुए तप एवं यज्ञानुष्ठान किये। तप से सूखकर वे इतने कृश हो गये कि शरीर की धमनियाँ दिखायी देने लगीं। अन्त में अपने मुख में एक पत्थर की बटिया रखकर नग्नावस्था में प्रव्रजित हो गये।"
"यतः पिता ऋषभदेव ने वन जाते समय अपने हिमवर्ष का राज्य भरत को प्रदान किया था, अतः तब से यह हिमवर्ष भारतवर्ष के नाम से प्रसिद्ध हुआ।"१६
'मनुस्मृति' (१/६३) में मनुओं की संख्या चौदह १७ बतलायी गयी है। उनमें स्वायंभुव मनु प्रथम मनु थे। मनुस्मृति (१/७९) के अनुसार एक मनु का काल (मन्वन्तर)
१६. लिंगपुराण (४७/१९-२५) एवं श्रीमद्भागवतमहापुराण (५/४/ वाक्य ८-९) में भी भगवान्
ऋषभदेव के ज्येष्ठपुत्र भरत के नाम से ही 'भारतवर्ष' नाम प्रचलित होने का वर्णन है। १७. १. स्वायंभुव, २.स्वारोचिष, ३.औत्तमि, ४.तामस, ५.रैवत, ६.चाक्षुष, ७.वैवस्वत, ८.सावर्णि,
९.दक्षसावर्णि, १०.ब्रह्मसावर्णि, ११.धर्मसावर्णि, १२.रुद्रसावर्णि, १३. रौच्यदैवसावर्णि, और १४. इन्द्रसावर्णि। (वामन शिवराम आप्टे : संस्कृत-हिन्दी कोश / 'मनुः')।
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