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२५४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०४/प्र०१ इसे संस्कृतवृत्ति में इस प्रकार स्पष्ट किया गया है-"क्षपणकाः स्त्रीमुक्ति-निषेधकं तीर्थकर भणन्ति।"(प्रव.परी. /१/१/७१ / पृ. ५०)।
वैदिकपरम्परा के 'महाभारत' के अतिरिक्त अन्य धार्मिक एवं दार्शनिक ग्रन्थों में भी 'क्षपणक' शब्द से 'दिगम्बरजैन मुनि' अर्थ ही लिया गया है। यथा
१. “यत्र क्षपणका इव दृश्यन्ते मलधारिणः" (रुद्रसंहिता / पार्वतीखण्ड,२४/२१)। २. "नग्नक्षपणकादीनां ---।" (श्रीमद्भगवतगीता / शांकरभाष्य / १८ / २२)। ३. "क्षपणस्य वरा पूजा अर्हतो ध्यानमुत्तमम्॥" २० ॥ (पद्ममहापुराण / भूमिखण्ड)।
संस्कृतसाहित्य के चाणक्यशतक, पञ्चतन्त्र, मुद्राराक्षस, कादम्बरी, हर्षचरित, प्रबोधचन्द्रोदय आदि ग्रन्थों में दिगम्बरजैन मुनि का वर्णन क्षपणक या नग्नक्षपणक नाम से ही किया गया है। इन ग्रन्थों के उदाहरण स्वतन्त्र शीर्षकों में आगे द्रष्टव्य हैं।
जैनेतर शब्दकोशों में भी 'क्षपणक' शब्द को दिगम्बरजैन मुनि का वाचक बतलाया गया है। यथा१. नग्नाटो दिग्वासाः क्षपणः श्रमणश्च जीवको जैनः। आजीवो मलधारी निर्ग्रन्थः कथ्यते सद्भिः ॥ २/१९०॥
हलायुधकोश। २. "नग्नो बन्दिक्षपणयोः पुंसि त्रिषु विवाससि।" (मेदिनीकोश / नं. १३)। ३. "निर्ग्रन्थः क्षपणस्तथा।" (कोषकल्पतरुः/५३)।
४. Kshapanaka = a religious mendicant, (especially a) Jaina mendicant who wears no garments. (M. Monier Williams : Sans.- Eng. Dictionary, p. 326)
प्राकृत भाषाओं के विशेषज्ञ प्रसिद्ध जर्मन विद्वान् डॉ० रिचार्ड पिशल ने अपने 'प्राकृत भाषाओं का व्याकरण' नामक ग्रन्थ के 'विषयप्रवेश' (पृ. ३१) में लिखा है-"प्रबोधचन्द्रोदय के पेज ४६ से ६४ तक एक क्षपणक आया है, जो दिगम्बर जैन साधु बताया गया है।---लटकमेलक के पेज १२-१५ और २५ से २८ में भी एक दिगम्बर पात्र नाटक में खेल करता है, जो मागधी बोलता है। यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि नाटकों में सर्वत्र ये 'क्षपणक' दिगम्बर होते हैं।"
इन प्रमाणों से सिद्ध है कि दिगम्बर, श्वेताम्बर और वैदिक परम्परा के साहित्यों में तथा संस्कृतसाहित्य एवं शब्दकोशों में 'क्षपणक' शब्द का प्रयोग दिगम्बरजैन मुनि के अर्थ में किया गया है।
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