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अ०४/प्र०१
जैनेतर साहित्य में दिगम्बरजैन मुनियों की चर्चा / २४७ और श्रमण सम्प्रदायों का उल्लेख मिलता है। जैन एवं बौद्ध साधु आज तक भी श्रमण कहलाते हैं। वैदिक परम्परा के धार्मिक गुरु कहलाते थे ऋषि, जिनका वर्णन ऋग्वेद में बारम्बार आया है। किन्तु श्रमणपरम्परा के साधुओं की संज्ञा मुनि थी, जिसका उल्लेख ऋग्वेद में केवल उन वातरशन मुनियों के संबंध को छोड़ अन्यत्र कहीं नहीं आया। ऋषि-मुनि कहने से दोनों सम्प्रदायों का ग्रहण समझना चाहिये। पीछे परस्पर इन सम्प्रदायों का खूब आदान-प्रदान हुआ और दोनों शब्दों को प्रायः एक-दूसरे का पर्यायवाची माना जाने लगा।" (भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान / पृ. ११-१८)। शिश्नदेव-ऋवेद के दो सूक्तों में शिश्नदेवों अर्थात् नग्नदेवों की चर्चा है। यथा
न यातव इन्द्र जूजुवर्नो न वन्दना शविष्ठ वेद्याभिः।
स शर्धदर्यो विषुणस्य जन्तोर्मा शिश्नदेवा अपि गुर्ऋतंनः॥ ७/२१॥ अनुवाद-“हे इन्द्र! हे शक्तिमान् देव! न तो दुष्टात्माओं ने हमें अपने कुचक्रों से प्रेरित किया है, न राक्षसों ने। हमारा सच्चा देव हमारे शत्रुओं को वश में करे। शिश्नदेव हमारे पवित्र यज्ञ के समीप न आवें।"
स वाजं यातापदुष्पदा यन्त्स्वर्षाता परि षदत्सनिष्यन्।
अनर्वा यच्छतदुरस्य वेदो अञ्छिश्नदेवाँ अभि वर्पसा भूत्॥ १०/९९ ॥ अनुवाद-"वह (इन्द्र) अत्यन्त शुभमार्ग से युद्ध के लिये जाता है। उसने स्वर्ग के प्रकाश को जीतने के लिए अत्यन्त कठिन परिश्रम किया, उसे पाने को वह बहुत उत्सुक था। उसने शिश्नदेवों को मारकर सौ द्वारों वाले दुर्ग की निधि पर अधिकार कर लिया।"
ए० एम० मैक्डानल ने अपने ग्रन्थ वैदिक माइथॉलॉजी में कहा है कि "शिश्नदेवों की पूजा ऋग्वेद के धार्मिक विचारों के प्रतिकूल रही होगी, क्योंकि उन्हें यज्ञस्थल में न आने देने के लिए इन्द्र से प्रार्थना की गयी है। ऋग्वेद में यह भी कहा गया है कि जब इन्द्र ने सौ द्वारोंवाले दुर्ग में खजाने को छिपा हुआ देखा, तब उसने शिश्नदेवों का वधकर उस खजाने पर कब्जा कर लिया।" (देखिये, 'वैदिक माइथॉलॉजी' का रामकुमार राय-कृत हिन्दी अनुवाद / पृ.२९६)।
"शिश्नदेव' इस नाम वैशिष्ट्य तथा शिश्नदेवों के वेदप्रतिकूल धर्म-दर्शन से स्पष्ट है कि वे नग्न देवों अर्थात् नग्न तीर्थंकरों की उपासना करनेवाले निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय के लोग थे। पं० कैलाशचन्द्र शास्त्री ने लिखा है कि "प्रायः सभी विद्वानों ने 'शिश्नदेवाः' का अर्थ शिश्न को देवता माननेवाले अर्थात् लिंगपूजक किया है। किन्तु इसका एक दूसरा अर्थ भी होता है-शिश्नयुत देवता को माननेवाले अर्थात् जो नंगे देवताओं को
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