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अ०४/प्र०१
जैनेतर साहित्य में दिगम्बरजैन मुनियों की चर्चा / २४५ (३/२८८) में वर्णन है-'वातोद्धृता जटास्तस्य रेजुराकुलमूर्तयः' और हरिवंशपुराण (९/ २०४) में उन्हें कहा है-'सप्रलम्बजटाभार-भ्राजिष्णुः।' इस प्रकार ऋग्वेद के केशी
और वातरशन मुनि, तथा भागवतपुराण के ऋषभ और वातरशन-श्रमण-ऋषि एवं केसरियानाथ ऋषभ तीर्थंकर और उनका निर्ग्रन्थसम्प्रदाय एक ही सिद्ध होते हैं।
"केशी और ऋषभ के एक ही पुरुषवाची होने के उक्त प्रकार अनुमान करने के पश्चात् हठात् मेरी दृष्टि ऋग्वेद की एक ऐसी ऋचा पर पड़ गई, जिसमें वृषभ और केशी का साथ-साथ उल्लेख आया है। वह ऋचा इस प्रकार है
ककर्दवे वृषभो युक्त आसीद् अवावचीत् सारथिरस्य केशी। दुधेर्युक्तस्य द्रव्रतः सहानस ऋच्छन्तिष्मा निष्पदो मुद्गलानीम्॥
(ऋग्वेद / १० /१०२/६)। "जिस सूक्त में यह ऋचा आई है उसकी प्रस्तावना में निरुक्त के जो 'मुद्गलस्य हृता गावः' आदि श्लोक उद्धृत किए गए हैं, उनके अनुसार मुद्गल ऋषि की गौओं को चोर चुरा ले गए थे। उन्हें लौटाने के लिए ऋषि ने केशी वृषभ को अपना सारथी बनाया, जिसके वचन मात्र से वे गौएँ आगे को न भागकर पीछे की और लौट पड़ीं। प्रस्तुत ऋचा का भाष्य करते हुए सायणाचार्य ने पहले तो वृषभ और केशी का वाच्यार्थ पृथक् बतलाया है, किंतु फिर प्रकारान्तर से उन्होंने कहा है
- "अथवा, अस्य सारथिः सहायभूतः केशी प्रकृष्टकेशो वृषभः अवावचीत् भ्रशमशब्दयत्" इत्यादि।
"सायण के इसी अर्थ को तथा निरुक्त के उक्त कथा-प्रसंग को भारतीय दार्शनिक परम्परानुसार ध्यान में रखते हुए प्रस्तुत गाथा का मुझे यह अर्थ प्रतीत होता है
"मुद्गल ऋषि के सारथी (विद्वान् नेता) केशी वृषभ, जो शत्रुओं का विनाश करने के लिए नियुक्त थे, उनकी वाणी निकली, जिसके फलस्वरूप जो मुद्गल ऋषि की गौएँ (इन्द्रियाँ) जुते हुए दुर्धर रथ (शरीर) के साथ दौड़ रही थीं, वे निश्चल होकर मौद्गलानी (मुद्गल की स्वात्मवृत्ति) की और लौट पड़ी।
"तात्पर्य यह कि मुद्गल ऋषि की जो इन्द्रियाँ पराङ्मुखी थीं, वे उनके योगयुक्त ज्ञानी नेता केशी वृषभ के धर्मोपदेश को सुनकर अन्तर्मुखी हो गईं।
"इस प्रकार केशी और वृषभ या ऋषभ के एकत्व का स्वयं ऋग्वेद से ही पूर्णतः समर्थन हो जाता है। विद्वान् इस एकीकरण पर विचार करें। मैं पहले ही कह चुका हूँ कि वेदों का अर्थ करने में विद्वान् अभी पूर्णतः सफल नहीं हो सके हैं। विशेषतः वेदों की जैसी भारतीय संस्कृति में पदप्रतिष्ठा है, उसकी दृष्टि से तो अभी
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