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२४० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०४/प्र०१ है। पं० दलसुख मालवणिया ने लिखा है-"वैदिक दर्शनों के अनुयायी जब छह दर्शनों की चर्चा करते है, तब वे छह दर्शनों में केवल वैदिक दर्शनों (न्याय-वैशेषिक, सांख्ययोग और पूर्व एवं उत्तर मीमांसा) का ही समावेश करते हैं। किन्तु, प्रस्तुत 'षड्दर्शनसमुच्चय' में वैदिक-अवैदिक सब मिलाकर (दर्शनों की) छह संख्या है।" (षड्दर्शनसमुच्चय। प्रस्ता./पृ.७)। तात्पर्य यह कि न्याय, वैशेषिक आदि छह दर्शन भी वैदिकदर्शन के ही नाम से प्रसिद्ध हैं।
इन प्रमाणों के आधार पर प्रस्तुत अध्याय में वेद, उपनिषद् आदि के अतिरिक्त वेदानुयायी धार्मिकग्रन्थ रामायण, महाभारत तथा पुराण आदि को वैदिक-साहित्य के नाम से अभिहित किया गया है तथा संस्कृत में लिखित जिस साहित्य में साम्प्रदायिक सिद्धान्तों के प्रतिपादन की प्रधानता न होकर काव्यात्मकता की प्रधानता है, उस गद्यपद्य-नाट्यरूप साहित्य एवं कला-शिल्प-विषयक साहित्य को संस्कृतसाहित्य में परिगणित किया गया है। इन दोनों प्रकार के साहित्यों से एक ही शीर्षक के अन्तर्गत कालक्रमानुसार उद्धरण दिये जा रहे हैं।
वैदिकसाहित्य एवं संस्कृतसाहित्य में ऋग्वेद से लेकर ११वीं शताब्दी ई० तक के बीस से अधिक ग्रन्थों में दिगम्बरजैन मुनियों का उल्लेख किया गया है। एक पुराण में श्वेताम्बर मुनियों की भी चर्चा है। जिन ग्रंथों में ये उल्लेख हैं, उनके रचनाकाल तथा जिन ऐतिहासिक या पौराणिक मानव-पात्रों के साथ उनका वर्णन किया गया है, उनके काल से दिगम्बर-जैनमत की प्राचीनता का निश्चय किया जा सकता है।
दिगम्बरमत के ग्रंथों में बतलाया गया है कि दिगम्बरजैन मुनि यथाजातरूपधर (जन्म के समय जैसा रूप होता है, वैसे सर्वांगनिर्वस्त्र नग्नरूप को धारण करनेवाले) होते हैं, उनके हाथ में मयूरपिच्छी होती है तथा जब कोई उनकी वन्दना करता है, तब वे उसे 'धर्मवृद्धि हो' यह आशीर्वाद देते हैं। इसी प्रकार श्वेताम्बरीय ग्रन्थों में श्वेताम्बरमुनि को वस्त्र, पात्र, मुखवस्त्रिका, रजोहरण, कम्बल आदि अनेक उपकरणों का धारी तथा 'धर्मलाभ' का आशीर्वाद देनेवाला वर्णित किया गया है। वैदिकसाहित्य एवं संस्कृतसाहित्य में दिगम्बर और श्वेताम्बर मुनि इसी रूप में चित्रित किये गये हैं। इन दोनों साहित्यों को मिश्रित कर उनसे कालक्रमानुसार उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं
ऋग्वेद में वातरशन मुनि, वृषभ, शिश्नदेव _वैदिकसाहित्य के प्रमुख ग्रन्थ ऋग्वेद की रचना कम से कम १५०० ई० पू० में मानी गई है। उसमें दिगम्बरजैन मुनियों का उल्लेख मिलता है। इस पर प्रकाश
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