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________________ अ०३/प्र०२ श्वेताम्बरसाहित्य में दिगम्बरमत की चर्चा / १९७ श्रेणियों का पारस्परिकभेद स्पष्ट होता है और श्रावक-श्रविकाओं के द्वारा उनकी यथायोग्य विनय की जानी चाहिए , यह अर्थ भी धोतित होता है। आचार्य जयसेन ने इसे कुलव्यवस्था (स्त्रीसंघव्यवस्था) कहा है और इसे ज्ञापित करने के लिए ही आर्यिकाओं को उपचार से महाव्रती कहने का औचित्य बतलाया है। सार यह कि दिगम्बरपरम्परा में आर्यिकाएँ उपचरित अर्थ की अपेक्षा महाव्रती होती हैं, मुख्यार्थ की अपेक्षा नहीं। अतः उपचरित शब्द से उपचरित अर्थ ही ग्राह्य है।३३ ५.५. 'नग्न' शब्द के मुख्य और उपचरित अर्थ जिस प्रकार 'सिंह' शब्द का मुख्य अर्थ है 'सिंह नामक क्रूर-शूर पशु तथा उपचरित अर्थ है 'क्रौर्यशौर्यादिगुण-युक्त', उसी प्रकार 'नग्न' शब्द का मुख्य अर्थ है 'वस्त्ररहित-शरीरवाला' तथा उपचरित अर्थ हैं : निर्लज्ज, असभ्य, अश्लीलचेष्टाकारी, उन्मत्त (पागल), दरिद्र आदि। क्योंकि वस्त्रादि-सकल-परिग्रह-त्यागी मुनि के अतिरिक्त निर्लज्जता आदि धर्मों से युक्त मनुष्य ही कदाचित् नग्न हो जाते हैं। अतः नग्न शब्द के मुख्यार्थ के साथ निर्लज्ज, असभ्य आदि अर्थ संयुक्त हैं। इसलिए ये नग्न शब्द के उपचरित अर्थ हैं। जो यथार्थतः नग्न है, उसे नग्न कहने से तो 'नग्न' शब्द निर्वस्त्ररूप मुख्य अर्थ का ही अभिधाशक्ति से प्रतिपादन करता है, किन्तु जो सवस्त्र है, उसे नग्न कहने से वह ('नग्न' शब्द) निर्वस्त्ररूप मुख्यार्थ का प्रतिपादन न कर लक्षणाशक्ति से निर्लज्ज, असभ्य अश्लीलचेष्टाकारी, उन्मत्त, दरिद्र आदि उपचरित अर्थ की प्रतीति कराता है। मुख्य और उपचरित दोनों 'नग्न' शब्दों से निर्वस्त्ररूप मुख्यार्थ का प्रतिपादन नहीं हो सकता, क्योंकि उपचरित–'नग्न' शब्द का निर्वस्त्ररूप मुख्यार्थ बाधित (असंगत) हो जाता है। उपचरित-'नग्न' शब्द से निर्लज्जादि-रूप उपचरित अर्थ का ही प्रतिपादन संभव है। सवस्त्र पुरुष या स्त्री के लिए लोक में 'नग्न' शब्द के ऐसे अनेक उपचरितप्रयोग मिलते हैं, जिनसे 'नग्न' शब्द उपचरित अर्थ का बोध कराता है। जैसे 'नंगा-लुच्चा', 'भूखे-नंगे लोग', 'नंगा नहाये निचोड़े क्या?', 'अपना नंगापन मत दिखलाओ,' 'वह तो नंगई पर उतर आया', 'नंगों से तो खुदा भी डरता है', 'मैं सरे आम तुम्हें नंगा करूँगा', इत्यादि मुहावरों में 'नंगा' शब्द औपचारिक होने से 'निर्वस्त्र' (खुले गुह्यांगवाला) अर्थ का वाचक नहीं है, अपितु लक्षणा-व्यंजना शक्तियों के द्वारा अत्यन्त निर्लज्ज, अत्यन्त दद्धि, अत्यन्त नीच आचरण करनेवाला. अत्यन्त लज्जित किये जाने योग्य इत्यादि अर्थों का प्रतिपादक है। ये उपचरित 'नग्न' शब्द के उपचरित अर्थ हैं। ३३. “अथ मतं-यदि मोक्षो नास्ति तर्हि भवदीयमते किमर्थमर्जिकानां महाव्रतारोपणम्? परिहार माहतदुपचारेण कुलव्यवस्था-निमित्तम्। न चोपचारः साक्षाद् भवितुमर्हति अग्निवत् क्रूरोऽयं देवदत्त इत्यादिवत्। तथा चोक्तम्-मुख्याभावे सति प्रयोजने निमित्ते चोपाचारः प्रवर्तते।" तात्पर्यवृत्ति / प्रवचनसार / आ.जयसेन-निर्दिष्ट गाथा 'जदि दंसणेण सुद्धा' ३/१३/ पृ.२७७-२७८। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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