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अ०३/प्र०२
श्वेताम्बरसाहित्य में दिगम्बरमत की चर्चा / १८७ लोक में भी सचेल मनुष्य के लिए 'नग्न' शब्द का व्यवहार रूढ़ (प्रसिद्ध) नहीं है तथा कदाचित् सचेल के लिए जो 'नग्न' शब्द का प्रयोग उपचार से किया जाता है, वह सचेल अर्थ का वाचक नहीं होता, बल्कि 'निर्लज्ज,' 'दरिद्र' आदि अर्थों का द्योतक होता है। इन तथ्यों का प्ररूपण आगे स्वतंत्र शीर्षकों (क्र.४ एवं ५) के साथ किया जा रहा है।
लोक में भी सचेल के लिए 'नग्न' शब्द का व्यवहार अप्रसिद्ध
श्री जिनभद्रगणि-क्षमाश्रमण एवं श्री संघदासगणि-क्षमाश्रमण ने निम्नलिखित दो दृष्टान्तों से यह सिद्ध करने का यत्न किया है कि लोक में सचेल मनुष्यों के लिए 'अचेलक' या 'नग्न' शब्द का व्यवहार रूढ़ (प्रसिद्ध) है
१. "जैसे कोई पुरुष नदी पार करते समय भीग जाने के भय से कटिवस्त्र उतारकर सिर पर लपेट लेता है, तो उसके द्वारा वस्त्र का उपभोग किये जाने पर भी लोग उसे अचेल (नग्न) कहते हैं, वैसे ही मुनि वस्त्रधारण करते हुए भी. अचेल कहलाते हैं।" (विशे.भा / गा. २६००)।
२. "जैसे कोई बहुछिद्रयुक्त पुरानी साड़ी पहने हुई स्त्री जुलाहे के पास जाकर कहती है कि मुझे शीघ्र नयी साड़ी बुनकर दो, मैं नंगी हूँ, वैसे ही अल्प, जीर्ण और मैले-कुचैले वस्त्र धारण करनेवाले साधु को भी नग्न कहा जाता है।" (विशे.भा./ गा.२६०१)।
दोनों दृष्टान्त अप्रामाणिक ये दोनों दृष्टान्त अप्रामाणिक हैं, क्योंकि इनसे यह सिद्ध नहीं होता कि सचेल पुरुष या स्त्री को दुनिया के सभी लोग 'नग्न' कहते और समझते हैं। जो पुरुष कटिवस्त्र (धोती) को उतारकर सिर पर लपेट लेता है और नग्न अवस्था में नदी पार करता है, वह वास्तव में नग्न होता है, क्योंकि उसके गुह्यांग खुले रहते हैं। अतः लोग उसे नग्न होने के कारण ही नग्न कहते हैं, सिर पर कटिवस्त्र लपेट लेने के कारण नहीं। इससे सिद्ध है कि वस्त्रधारी के लिए नग्न शब्द का प्रयोग लोकप्रसिद्ध नहीं है, अपितु नग्न के लिए ही 'नग्न' शब्द का प्रयोग लोकप्रसिद्ध है।
तथा बहुछिद्रयुक्त साड़ी पहने हुई स्त्री जुलाहे के पास जाकर स्वयं को नग्न इसलिए नहीं कहती कि छिद्रयुक्त साड़ी पहने हुई स्त्री के लिए 'नग्न' शब्द का प्रयोग लोकप्रसिद्ध है अर्थात् लोक के सभी मनुष्य बहुछिद्रयुक्त-साड़ीधारी स्त्री को नग्न कहते और समझते हैं, बल्कि इसलिए कहती है कि वैसी साड़ी पहनने में उसे
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