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अ०३/प्र०२
श्वेताम्बरसाहित्य में दिगम्बरमत की चर्चा / १८३ इस पर टिप्पणी करते हुए माननीय पं० कैलाशचन्द्र जी सिद्धान्ताचार्य लिखते हैं-"इसका आशय यह हुआ कि पार्श्वनाथ के धर्म में साधुओं को महामूल्यवान्
और अपरिमित वस्त्र पहनने की अनुज्ञा थी। इस व्याख्या के अनुसार केशी (पार्श्वनाथ के शिष्य) अवश्य ही राजसी वस्त्रों में होंगे। फिर भी अचेल गौतम (महावीर के शिष्य) को पार्श्वनाथ के निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय के उस आचार्य को देखकर रंचमात्र भी आश्चर्य नहीं हुआ, यह आश्चर्य है। ___ "असल में टीकाकारों ने 'संतरुत्तर' का यह अर्थ 'अचेल' शब्द के अर्थ को दृष्टि में रखकर किया है। जब अचेल का अर्थ वस्त्राभाव के स्थान में क्रमशः कुत्सितचेल, अल्पचेल और अल्पमूल्यचेल किया गया, तो संतरुत्तर (सान्तरोत्तर) का अर्थ अपरिमित
और महामूल्यवाले वस्त्र होना ही चाहिए था। किन्तु यह अर्थ करते समय टीकाकार यह शायद भूल ही गये कि आचारांगसूत्र २०९ में भी 'संतरुत्तर' पद आया है और वहाँ उसका अर्थ क्या लिया गया है?" (जै.सा.इ./ पू.पी./ पृ. ३९७)।
आचारांग के सूत्र २०९ (अध्याय ७, उद्देशक ४) की व्याख्या में आचार्य शीलांक ने एक ऐसे प्रावरणीय (चादर) को सान्तरोत्तर कहा है जो आवश्यकता पड़ने पर ओढ़ लिया जाय और आवश्यकता न रहने पर पास में रख लिया जाय। यह पूर्व (अध्याय ३/प्र.१/शी.६) में स्पष्ट किया जा चुका है। इस तरह सान्तरोत्तर का 'बहुमूल्य रंगीन वस्त्र सहित' यह अर्थ करना आचारांग के ही अनुसार अप्रामाणिक है।
सचेल या सान्तरोत्तर का 'शरीरप्रमाणाधिक बहुमूल्य, रंगीन वस्त्रों से सहित' अर्थ करने से एक प्रश्न और खड़ा होता है। वह यह कि मध्य के बाईस तीर्थंकरों ने किसी साधु के लिए सफेद रंग के फटे-पुराने अल्पवस्त्र तथा किसी के लिए बहुमूल्य रंग-बिरंगे पर्याप्त वस्त्र धारण करने का विधान क्यों किया? क्या इस वस्त्रभेद से मोक्षसाधना में कोई फर्क पड़ता है? शीतादिपरीषह-पीड़ा का निवारण तो किसी भी रंग के फटे-पुराने कपड़े पहनने से हो सकता है, फिर किन्हीं साधुओं के लिए रंगबिरंगे वेशकीमती वस्त्र पहनने की छूट देने का कारण क्या है? क्या महामूल्य रंगीन वस्त्र पहनने से संयम, ध्यान, अध्ययन आदि की साधना और अच्छी तरह सम्पन्न होती है? इस प्रश्न का कोई समाधान उपलब्ध नहीं है और भगवान् का कोई भी उपदेश ऐसा हो नहीं सकता, जिसके पीछे कोई युक्ति न हो। किन्तु , इस वस्त्रभेद के पीछे कोई युक्ति नहीं है, इससे सिद्ध है कि अचेल और सचेल की उपर्युक्त व्याख्याएँ अशास्त्रप्रसिद्ध एवं अलोकप्रसिद्ध हैं।
___ श्वेताम्बरसंघ आरंभ से ही श्वेतवस्त्र, श्वेतपट, श्वेताम्बर और सिताम्बर नामों से प्रसिद्ध है। ये नाम ही श्वेताम्बरसम्प्रदाय की इस विशिष्टता का उद्घोष करते हैं
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