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१८० / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०३ / प्र०२
निरसन ३.४. आगम में 'अचेलक' शब्द से 'अचेलक' अर्थ ही अभीष्ट
श्री जिनभद्रगणि-क्षमाश्रमण ने विशेषावश्यकभाष्य की पूर्वोद्धृत २५९८वीं गाथा में कहा है कि लोक और आगम, दोनों में 'सचेलक' के लिए 'अचेलक' शब्द प्रसिद्ध है (लोगसमयसंसिद्धो), किन्तु यह प्रामाणिक नहीं है।
'आचारांग में 'अचेल' शब्द से 'अचेल' (नग्न) अर्थ ही प्रतिपादित किया गया है, 'सचेल' या 'अल्पचेल' अर्थ नहीं। (देखिये, इसी अध्याय का प्र.१ / शी.६)। तथा 'स्थानांग' में कहा गया है कि "भिक्षु को यदि नग्न रहने में लज्जा का अनुभव हो, या वह शीतादि परीषह सहने में असमर्थ हो अथवा लोकनिन्दा से भयभीत हो, तभी वस्त्र धारण करे, अन्यथा अचेल रहे।" (देखिये, इसी अध्याय का प्र.१ / शी.१०)। लज्जा का अनुभव न होने पर अचेल रहने का अर्थ है कटिवस्त्र आदि धारण न करना (नग्न रहना)। यहाँ भी 'अचेल' शब्द 'अचेल' (नग्न) अर्थ का ही प्रतिपादक है। श्री संघदासगणी एवं श्री क्षेमकीर्ति ने भी अजितादि बाईस तीर्थंकरों के तीर्थ के अचेल और सचेल साधुओं में 'अचेल' का अर्थ 'नग्न' बतलाया है। (देखिये, पूर्वशीर्षक ३.२)। इन प्रमाणों से सिद्ध है कि आगम में सचेल के लिए 'अचेलक' शब्द का व्यवहार प्रसिद्ध होने का कथन प्रामाणिक नहीं है। ३.५. प्राकृत-संस्कृत-भाषा-असम्मत वचन आप्तवचन नहीं
अचेलक शब्द का प्रतिपादित किया गया सचेल अर्थ अथवा श्वेत-जीर्णअल्पवस्त्रधारी अर्थ तथा सचेल शब्द का प्ररूपित किया गया बहुमूल्य-पंचवर्णवस्त्रधारी अर्थ प्राकृत-संस्कृत-भाषा-असम्मत, लोकभाषा-असम्मत एवं आगम- असम्मत (आचारांगस्थानांग-असम्मत) है। अतः इन अर्थों के प्रतिपादक मानने पर 'अचेलक' और 'सचेल' शब्द आप्तवचन नहीं हो सकते। जिनवचन प्राकृत-संस्कृत में लिखित शास्त्रों में ही सन्निहित हैं और 'अचेलक' शब्द का 'नग्न' अर्थ ही प्राकृत-संस्कृत-भाषा-सम्मत, लोकभाषा-सम्मत और आगमसम्मत है। अतः उसे इसी अर्थ का प्रतिपादक मानने पर वह आप्तवचन कहला सकता है। इसी प्रकार 'सचेल' शब्द का केवल 'सचेल' (सवस्त्र) अर्थ स्वीकार करने पर ही वह आप्तवचन की कोटि में आ सकता है। यदि तीर्थंकरों को अपने तीर्थ के साधुओं के लिए श्वेत-जीर्ण अल्पवस्त्र एवं बहुमूल्यपंचवर्णात्मक-वस्त्र धारण करने का उपदेश देना अभीष्ट होता, तो वे इन्हीं शब्दों का अथवा सितचेल, रंजितचेल, कुचेल, सुचेल आदि संक्षिप्त शब्दों का प्रयोग करते हुए उपदेश देते। किन्तु, जिन शब्दों के ये अर्थ नही हैं, उन 'अचेल' और 'सचेल' शब्दों का प्रयोग कभी न करते, क्योंकि उनके शिष्य इन शब्दों से उपर्युक्त अर्थ असंगत
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