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१७४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०३ / प्र०२ में ऐसी घटनाएँ अघटनीय नहीं होतीं।" (आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन । खण्ड २/पृ. ५५८)।
मूर्धन्य श्वेताम्बर विद्वान् पं० बेचरदास जी के विचारों से भी उक्त तथ्य सम्पुष्ट होता है। उनके विचार द्वितीय अध्याय में उद्धृत किये गये हैं।२२
सचेल के लिए 'अचेलक' शब्द का व्यवहार प्रसिद्ध बतलाने का प्रयास ३.१. महावीर के तीर्थ में सचेलकधर्म का अस्तित्व नहीं
यह आश्चर्य की बात है कि श्वेताम्बरग्रन्थों के अनुसार तीर्थंकर महावीर के तीर्थ में सचेलकधर्म का अस्तित्व ही सिद्ध नहीं होता, क्योंकि उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है कि भगवान् महावीर ने केवल अचेलकधर्म का उपदेश दिया था और भगवान् पार्श्वनाथ ने अचेल और सचेल दोनों धर्मों का।२३ तथा कल्पनियुक्ति की 'आचेलक्कुदेसिय' इत्यादि गाथा में वर्णन है कि साधुओं के दस कल्पों (आचारों) में 'आचेलक्य' (अचेलत्व) पहला कल्प (आचार) है। अर्थात् साधु के लिए अचेलत्व धारण करना अनिवार्य है।४ इन कथनों से सिद्ध होता है कि भगवान् महावीर ने सचेलकधर्म का उपदेश नहीं दिया था, वे केवल अचेलकधर्म के उपदेशक थे। इससे निष्कर्ष निकलता है कि वर्तमान में प्रचलित सचेलकधर्म तीर्थंकर महावीर द्वारा अनुपदिष्ट, निह्नवमत है। केवल दिगम्बरजैनमत अचेलकधर्म का अनुयायी होने के कारण तीर्थंकर महावीर द्वारा उपदिष्ट ठहरता है। यह भी नहीं कहा जा सकता कि वर्तमान में प्रचलित सचेलकधर्म तीर्थंकर पार्श्वनाथ द्वारा उपदिष्ट है, क्योंकि उनका तीर्थकाल भगवान् महावीर के तीर्थंकर होते ही समाप्त हो गया था। अब तीर्थंकर महावीर का तीर्थकाल प्रचलित है। उसमें सचेलकधर्म का उपदेश नहीं है। ३.२. विपरीतार्थ-प्ररूपण द्वारा महावीर के तीर्थ में सचेलकधर्म की सिद्धि का
प्रयास
श्री जिनभद्रगणि-क्षमाश्रमण तथा श्री संघदासगणि-क्षमाश्रमण की दृष्टि जब उपर्युक्त तथ्य पर गयी, तो उन्होंने भगवान् महावीर के तीर्थ में सचेलधर्म का उपदेश सिद्ध करने के लिए उलटी गंगा बहाने का एक अद्भुत उपाय ढूँढ़ निकाला। उन्होंने रात
२२. देखिए , अध्याय २/ प्रकरण ३/ शीर्षक ३.१०। २३. देखिये, इसी अध्याय का प्रथम प्रकरण / शीर्षक ५। २४. देखिये, इसी अध्याय का प्रथम प्रकरण / शीर्षक ५।
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