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अ०३ / प्र०१
श्वेताम्बरसाहित्य में दिगम्बरमत की चर्चा / १५९ तात्यर्य यह कि अपराजितसूरि के अनुसार भगवान् महावीर सर्वथा अचेल अवस्था में ही प्रव्रजित हुए थे, उन्होंने मोक्षमार्ग के सवस्त्र होने का उपदेश देने के लिए देवदूष्य नाम का वस्त्र ग्रहण नहीं किया था। यदि किसी ने उनके कन्धे पर कोई वस्त्र डाल दिया था, तो उसे उपसर्ग माना जायेगा।
तीर्थंकरों के सर्वथा अचेल होने का कथन श्वेताम्बरमत में आगे चलकर अचेल शब्द को मुख्यार्थ के अतिरिक्त औपचारिक अर्थ में भी प्रयुक्त मान लिया गया। यह बतलाया जाने लगा कि तीर्थंकरों के साथ 'अचेल' शब्द का प्रयोग मुख्य अर्थ में अर्थात् 'सर्वथा वस्त्ररहित' अर्थ में हुआ है
और शेष मुनियों के साथ औपचारिक अर्थ में अर्थात् 'अल्पवस्त्रसहित' अथवा 'कुत्सितवस्त्रसहित' अर्थ में व्यवहृत हुआ है। बृहत्कल्पसूत्र के लघुभाष्य में श्री संघदास गणी (६-७वीं शती ई०) का वक्तव्य है
दुविहो होंति अचेलो, संताचेलो असंतचेलो य।
तित्थगरा असंतचेला, संताचेला भवे सेसा॥ ६३६५॥ __ अनुवाद-"अचेल दो प्रकार के होते हैं : सद्-अचेल (वस्त्र-सहित अचेल) तथा असद्-अचेल (वस्त्ररहित अचेल)। तीर्थंकर वस्त्ररहित अचेल हैं, शेष साधु वस्त्रसहित अचेल।"
सर्वप्रथम विशेषावश्यकभाष्य में इन दो प्रकार के अचेलों का वर्णन मिलता है। उसकी वृत्ति में इनका प्ररूपण इस प्रकार किया गया है
"सामान्यसाधवः सद्भिरेव चेलैरुपचारतोऽचेला भण्यन्ते, जिनास्तु तीर्थकरा असद्भिश्चेलैर्मुख्यवृत्त्याऽचेला व्यपदिश्यन्ते।" (हेम.वृत्ति./विशे.भा./गा.२५९८)।
अनुवाद-"सामान्य साधु वस्त्र धारण करते हुए भी उपचार से अचेल कहे जाते हैं, और जिन (तीर्थंकर) वस्त्र धारण न करने के कारण मुख्यरूप से अचेल कहलाते हैं।"
उपचार का अर्थ है किसी वस्तु पर अन्य वस्तु का धर्म आरोपित करना। अर्थात् वस्तु में जो धर्म वास्तव में नहीं है उसे उस वस्तु में बतलाना। जैसे 'यह बालक
एवं तु युक्तं वक्तुं 'सर्वत्यागं कृत्वा स्थिते जिने केनचिदंसे वस्त्रं निक्षिप्तम्। उपसर्गः स इति।" विजयोदया टी. / भ.आ. / गा. 'आचेलक्कुद्देसिय' ४२३/ पृ. ३२६ हिन्दी अनुवाद :
पं० नाथूराम जी प्रेमी / जै.सा.इ./प्र.सं./पृ.५०। ४. “अन्यत्र प्रसिद्धस्य धर्मस्यान्यत्र समारोपणमसद्भूतव्यवहारः। असद्भूतव्यवहार एव उपचारः।"
आलापपद्धति। सूत्र २०७-२०८।
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