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अ०३/प्र०१
श्वेताम्बरसाहित्य में दिगम्बरमत की चर्चा / १५७ यह कथन इस तथ्य पर प्रकाश डालता है कि चौबीसों तीर्थंकर अन्त में नग्न हो गये थे और नग्नतारूप पूर्ण अपरिग्रह की अवस्था में की गई साधना से ही उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया था। तीर्थंकर महावीर ने दीक्षा ग्रहण करने के बाद जो देवदूष्य धारण किया था, वह तेरह मास बाद शरीर से च्युत हो गया था। तत्पश्चात् वे दस वर्ष
और ग्यारह मास तक मुनि (छद्मस्थ) अवस्था में तथा तीस वर्ष तक तीर्थंकर अवस्था में नग्न ही विहार करते रहे। इस प्रकार उन्हें केवलज्ञान एवं मोक्ष की प्राप्ति दिगम्बरलिंग से ही हुई थी। दिगम्बरमत यही मानता है कि तीर्थंकर-सहित सभी जीव एकमात्र दिगम्बरमुद्रा से ही मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। श्वेताम्बरसाहित्य में इस दिगम्बरमान्यता का उल्लेख होने से दिगम्बरमत की प्राचीनता प्रकट होती है। इससे यह तथ्य भी सामने आता है कि तीर्थंकर मल्लिनाथ ने भी नग्न अवस्था धारण की थी, अतः वे स्त्री नहीं थे, क्योंकि स्त्री को नग्न होने की आज्ञा न तो दिगम्बरसम्प्रदाय में है, न श्वेताम्बरसम्प्रदाय में जैसा कि श्वेताम्बरीय बृहत्कल्पसूत्र में कहा गया है-“नो कप्पई निग्गंथीए अचेलियाए हुंतए।" (५/१६)।
एकवस्त्रसहित प्रव्रज्या की कथा वस्तुत: चेलोपसर्ग किन्तु आचारांगादि में जो यह कहा गया है कि सभी तीर्थंकर एकवस्त्र लेकर प्रव्रजित हुए थे, उसे अपराजितसूरि प्रामाणिक नहीं मानते। उनका कथन है कि सभी तीर्थंकर सर्वथा वस्त्ररहित होकर ही प्रव्रजित हुए थे। भगवती-आराधना की टीका में वे लिखते हैं
"और जो भावना (आचारांग का २४ वाँ अध्ययन) में कहा गया है कि भगवान् महावीर ने एक वर्ष तक चीवर धारण किया और उसके बाद वे अचेलक हो गये, सो इसमें बहुत सी विप्रतिपत्तियाँ हैं, अर्थात् बहुत से विरोध और मतभेद हैं। क्योंकि कुछ लोग कहते हैं कि उस वस्त्र को, जो वीरजिन के शरीर पर लटका दिया गया था, लटका देनेवाले मनुष्य ने ही उसी दिन ले लिया था। दूसरे कहते हैं कि वह काँटों और डालियों आदि से उलझते-उलझते छह महीने में छिन्न-भिन्न हो गया था। कुछ लोग कहते हैं कि एक वर्ष से कुछ अधिक समय बीत जाने पर खंडलक नामक ब्राह्मण ने उसे ले लिया था और दूसरे कहते हैं कि जब वह हवा से उड़ गया और भगवान् ने उसकी उपेक्षा की, तो लटकानेवाले ने फिर उनके कन्धे पर लटका दिया। इस तरह अनेक विप्रतिपत्तियाँ होने के कारण इस बात में कोई तत्त्व नहीं दिखलाई देता। यदि सचेललिंग प्रकट करने के लिए भगवान् ने वस्त्रग्रहण किया था, तो फिर उसका विनाश क्यों इष्ट हुआ? उसे सदा ही धारण किये रहना था।
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