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अ०२/प्र०६
काल्पनिक हेतुओं की कपोलकल्पितता का उद्घाटन / १५१ साथ रहते थे और अपने संघ के लिए श्वेतपटसंघ तथा दिगम्बरसंघ के लिए निर्ग्रन्थसंघ नाम का प्रयोग श्वेताम्बरों को स्वीकार्य था। वे स्वयं दिगम्बरसंघ को 'निर्ग्रन्थसंघ' नाम से अभिहित करते होंगे, क्योंकि उस समय तक दिगम्बरों के लिए 'दिगम्बर' शब्द का व्यवहार प्रचलित नहीं हुआ था, वे 'निर्गन्थ' शब्द से ही जाने जाते थे। दिगम्बरसंघ के लिए 'निर्ग्रन्थसंघ' नाम का प्रयोग किये बिना श्वेताम्बरों को उससे अपनी भिन्नता प्रकट करना संभव नहीं था, क्योंकि दिगम्बरसंघ लोक में 'निर्ग्रन्थसंघ' नाम से ही प्रसिद्ध था, अभिलेखों में उसका निर्ग्रन्थसंघ नाम से उल्लेख किया जाना इस बात का प्रमाण है।
यतः पारस्परिक भेद प्रकट करने लिए दिगम्बरसंघ को निर्ग्रन्थसंघ कहना श्वेताम्बरों के लिए अपरिहार्य था, अतः सिद्ध है कि उनके लिए स्वसंघ को 'निर्ग्रन्थसंघ' शब्द से अभिहित करना संभव नहीं था। इससे साबित होता है कि कम से कम ईसा की पाँचवी शताब्दी तक श्वेताम्बरसंघ को यह सत्य स्वीकार्य था कि लोक में केवल दिगम्बर ही 'निर्ग्रन्थ' शब्द से प्रसिद्ध हैं।
८ कल्पित सचेलाचेलसंघ की 'निर्ग्रन्थसंघ' नाम से प्रसिद्धि अयुक्तियुक्त
डॉक्टर सागरमल जी के पूर्वोद्धृत (प्रकरण ३/शीर्षक १ में उद्धृत) वचनों से उनकी यह मान्यता प्रकट होती है कि 'ईसा की पाँचवी शताब्दी के प्रारंभ तक उत्तरभारत में सचेलाचेल-निर्ग्रन्थसंघ विद्यमान था। इसी समय उसका विभाजन श्वेताम्बर और यापनीय संघों के रूप में हुआ और उसका स्वतन्त्र अस्तित्व समाप्त हो गया।' किन्तु उसके विभाजन से जो संघ उत्पन्न बतलाये गये हैं, उनमें से न तो श्वेताम्बरसंघ 'निर्ग्रन्थसंघ' नाम से प्रसिद्ध हुआ, न यापनीयसंघ। केवल उससे जो उत्पन्न नहीं बतलाया गया है, वह दिगम्बरसंघ ही निर्ग्रन्थसंघ के नाम से प्रसिद्धि पाता रहा और पा रहा है। इससे सिद्ध है कि डॉक्टर सा० द्वारा स्वकल्पित उत्तरभारतीय सचेलाचेलसंघ को 'निर्ग्रन्थसंघ' नाम से प्रसिद्ध बतलाया जाना अयुक्तियुक्त है। और जैसा कि पूर्वोद्धृत प्रमाणों और युक्तियों से सिद्ध है, यापनीयसंघ की उत्पत्ति के पूर्व भारत के किसी भी कोने में सचेलाचेल-प्रवृत्तिवाला कोई श्रमणसंघ था ही नहीं, अत: उसके 'निर्ग्रन्थ' नाम से प्रसिद्ध होने का भी प्रश्न नहीं उठता। निष्कर्ष यह कि जैसे उत्तरभारतीयसचेलाचेलसंघ के अस्तित्व की मान्यता कपोलकल्पित है, वैसे ही उसके 'निर्ग्रन्थसंघ' कहलाने की मान्यता भी कपोलकल्पित है।
इन अनेक प्रमाणों और युक्तियों से सिद्ध होता है कि श्वेताम्बराचार्यों ने सग्रन्थ (सचेल) होते हुए भी अपने लिए आगमों में जो 'निर्ग्रन्थ' शब्द का प्रयोग किया है, वह इतिहासविरुद्ध अनधिकृत चेष्टा है।
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