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१५२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०२/प्र०६ उपसंहार उपर्युक्त प्रमाण और युक्तियाँ यह तथ्य अनावृत कर देती हैं कि मान्य श्वेताम्बरमुनियों और विद्वानों ने दिगम्बरमत को निह्नवमत (तीर्थंकरोपदेश के विपरीत, स्वकल्पित, मिथ्यामत) एवं अर्वाचीन, दिगम्बरसाहित्य को यापनीयसाहित्य तथा आचार्य कुन्दकुन्द को विक्रम की छठी शती में उत्पन्न सिद्ध करने के लिए जो पूर्ववर्णित हेतुओं की कल्पना की है, वे सर्वथा अप्रामाणिक और अयुक्तिसंगत हैं, अत एव कपोलकल्पित हैं।
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