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अ० २ / प्र० ६
काल्पनिक हेतुओं की कपोलकल्पितता का उद्घाटन / १४५
परम्परा का जो श्रमणसंघ उत्तरभारत से दक्षिण गया था, वह भी अपने को निर्ग्रन्थसंघ कहता था, क्योंकि उस समय उत्तरभारत में जैनसंघ इसी नाम से जाना जाता था । डॉक्टर सा० के कथनानुसार यह अचेल निर्ग्रन्थसंघ ईसा की पाँचवीं शताब्दी तक निर्ग्रन्थसंघ के ही नाम से विख्यात था, क्योंकि पाँचवीं शती ई० के देवगिरि एवं हल्सी के ताम्रपत्रलेखों में इसी नाम से इसका उल्लेख है। डॉक्टर सा० ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि "आज की दिगम्बरपरम्परा का पूर्वज यही दक्षिणी अचेल निर्ग्रन्थसंघ है । " ( देखिये, पूर्व प्रकरण ३ / शी. ५) । इससे सिद्ध हो जाता है कि दिगम्बरसंघ ही ईसापूर्व चौथी शताब्दी से और वस्तुतः तीर्थंकर महावीर के समय से निर्ग्रन्थसंघ नाम से प्रसिद्ध रहा है।
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ईसापूर्व चतुर्थ शती से श्वेताम्बरसंघ 'श्वेतपटसंघ' नाम से प्रसिद्ध
डॉ० सागरमल जी ने लिखा है कि " दक्षिण का अचेल -निर्ग्रन्थसंघ भद्रबाहु ( प्रथम ) की परम्परा से और उत्तर का सचेल-निर्ग्रन्थसंघ स्थूलभद्र की परम्परा से विकसित हुआ ।" (देखिये, पूर्व प्रकरण ३ / शी. ५) । किन्तु, निर्ग्रन्थसंघ के ऐसे अचेल और सचेल दो भेद किसी भी शिलालेख अथवा किसी भी सम्प्रदाय के साहित्य में नहीं मिलते। ईसापूर्व प्रथम शताब्दी के बौद्धग्रन्थ अपदान में सचेल - जैन श्रमणसंघ को श्वेतवस्त्रसंघ नाम से अभिहित किया गया है और ईसा की पाँचवीं शताब्दी के देवगिरिताम्रपत्रलेख में उसका उल्लेख श्वेतपटश्रमणसंघ नाम से हुआ है। इससे प्रमाणित होता है कि स्थूलभद्र की परम्परा से विकसित सचेल - जैन श्रमणसंघ उनके समय ( ईसापूर्व चौथी शताब्दी) से लेकर ईसा की पाँचवीं शताब्दी तक श्वेतपट श्रमणसंघ नाम से ही जाना जाता था। आज भी वह इसी नाम या इसके पर्यायवाची श्वेताम्बरसंघ नाम से प्रसिद्ध है।
डॉक्टर सा० ने इसी प्रकरण ६ के शीर्षक २ में जो कथन किया है, उससे निर्ग्रन्थसंघ से पृथक् होकर अस्तित्व में आये सचेल - श्रमणसंघ के लिए 'निर्ग्रन्थसंघ' नाम के प्रयोग का औचित्य सिद्ध करनेवाला उनका तर्क भी सामने आता है। वह यह कि 'ईसापूर्व चतुर्थ शताब्दी में उत्तरभारत में जैनसंघ 'निर्ग्रन्थसंघ' नाम से ही जाना जाता था । और सचेल- श्रमणसंघ जैन था, इसलिए उसका 'निर्ग्रन्थ' नाम उचित है।' यह तर्क समीचीन नहीं है। यह सत्य है कि उस समय जैनसंघ 'निर्ग्रन्थसंघ' नाम से जाना जाता था, किन्तु यह स्मरणीय है कि वह जैनसंघ केवल अचेल - श्रमणों का संघ था। इसलिए 'निर्ग्रन्थसंघ' नाम अचेल - जैनसंघ ही जाना जाता था। अतः जब सचेल - जैनसंघ की उत्पत्ति हुई, तब उसने अपनी सचेल - जैनसंघ के रूप में पहचान
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