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________________ अ०२/प्र०५ काल्पनिक हेतुओं की कपोलकल्पितता का उद्घाटन / १३७ आदरणीय स्थान होने तथा तत्त्वार्थसूत्र की विषयवस्तु दिगम्बर-परम्परा के अनुरूप होने से यह संकेत मिलता है।९३ नाटक समयसार के कर्ता सुप्रसिद्ध कवि पं० बनारसीदास जी (१७वीं शती ई०) जन्मना श्वेताम्बर थे। उन्होंने खरतरगच्छी श्वेताम्बराचार्य श्री भानुचन्द्र से शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने जब आचार्य कुन्दकुन्द का 'समयसार' पढ़ा, तब उन्हें दिगम्बर आम्नाय में श्रद्धा हुई और पश्चात् गोम्मटसार का प्रवचन सुनकर वे दिगम्बरमत के अनुयायी बन गये।" बीसवीं शताब्दी ई० के स्थानकवासी श्वेताम्बर साधु श्री कहान जी भी समयसार के अध्यात्मवाद से प्रभावित होकर दिगम्बर श्रावक बन गये थे। उनके साथ उनके सैकड़ों श्वेताम्बर श्रावक-शिष्यों ने भी दिगम्बरमत स्वीकार कर लिया था। बीसवीं शताब्दी ई० के ही दिगम्बराचार्य श्री शिवसागर जी के शिष्य श्री श्रुतसागर जी भी जन्मना श्वेताम्बर थे, उनकी पुत्री ने भी दिगम्बर आम्नाय में आर्यिका दीक्षा ग्रहण की है। दिगम्बर-आर्यिका श्री विशालमति ने भी श्वेताम्बर परिवार में जन्म लिया था। मुंबई के कई श्वेताम्बर परिवार सुप्रसिद्ध दिगम्बराचार्य श्री विद्यासागर जी के अनुयायी बन गये हैं। उनकी पुत्रियों ने आजीवन ब्रह्मचर्यव्रत ग्रहण किया है और भविष्य में आर्यिकाव्रत धारण करने का अभ्यास कर रही हैं। सुखकर श्वेताम्बरमार्ग के अनुयायी सन्तों और श्रावकों का क्लेशकर दिगम्बरमार्ग के प्रति यह आकर्षण भी सिद्ध करता है कि हीनसंहननधारी पंचमकालीन पुरुष अचेललिंग के आचरण के अयोग्य नहीं हैं। अतः अयोग्य कहकर उनके लिए अचेललिंग या जिनलिंग को निषिद्ध ठहराना दुरभिसन्धिपूर्ण आगमविरुद्ध चेष्टा है। ९३. गुरुपरम्परा से प्राप्त दिगम्बर जैनागम : एक इतिहास / पृष्ठ ६५। ९४. तीर्थंकर महावीर और उनकी आचार्य परम्परा / खण्ड ४/ पृ.२५१ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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