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११८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०२/प्र०५ यतः शिवभूति जिनेन्द्रगृहीत (तीर्थंकरगृहीत) वास्तविक अचेललिंग को ही (नाममात्र के लिए अचेल कहे जानेवाले सचेल जिनकल्प को नहीं) ग्राह्य बतलाना चाहता है, अतः वह जिनकल्प को ग्राह्य बतलाने के तुरन्त बाद अपने अभिप्राय को स्पष्ट करते हुए कहता है-“अचेलकाश्च जिनेन्द्राः। अतोऽचेलतैव सुन्दरेति" (हेम.वृत्ति. / विशे. भा./ गा. २५५१-५२)। अर्थात् जिनेन्द्र भी अचेलक होते हैं, अतः अचेलता ही सुन्दर है (उसे ग्रहण करना उचित है)।
___गुरु आर्यकृष्ण इसके उत्तर में कहते हैं-"तीर्थंकरों में जो अलौकिक योग्यताएँ होती हैं, वे उनके शिष्यों (अनुगामियों) में नहीं होती, अतः आगम में उनके लिए तीर्थंकरगृहीत अचेललिंग के ग्रहण का निषेध किया गया है। तीर्थंकरों में अनुपमधृति (अनुपम सहनशक्ति) का जनक वज्रवृषभनाराचसंहनन होता है, छद्मावस्था में वे मतिज्ञानादि चार ज्ञानों के स्वामी, अतिशयसत्त्वसम्पन्न, छिद्ररहित-पाणिपात्रवाले तथा समस्त परीषहों के विजेता होते हैं।७६ किन्तु उनके शिष्यों में ये गुण नहीं होते, अतः उनके लिए जिनेन्द्र ने अचेललिंग के ग्रहण का निषेध किया है। इसलिए तुम्हें (शिवभूति को) तीर्थंकर के उपदेश का आदर करते हुए नग्न नहीं होना चाहिए।"
शिवभूति गुरु (तीर्थंकर) के लिंग को युक्तिपूर्वक अनुकरणीय बतलाते हुए कहता है
जारिसियं गुरुलिंगं सीसेण वि तारिसेण होयव्वं।
न हि होइ बुद्धसीसो सेयवडो नग्गखवणो व॥८ अनुवाद-"जैसा गुरु का लिंग (वेश) होता है, वैसा ही शिष्य का भी होना चाहिए। श्वेतवस्त्र धारण करनेवाला अथवा नग्नवेशधारी साधु बुद्ध का शिष्य नहीं कहला सकता। अर्थात् बुद्ध रक्ताम्बरधारी थे, अतः जो रक्ताम्बर धारण करता है, उसे हीलोग बुद्ध का अनुयायी कह सकते हैं, श्वेताम्बर या दिगम्बर साधु को नहीं।"
गुरु आर्यकृष्ण इस युक्ति को निरस्त करते हुए कहते हैं- "यदि तीर्थंकर के शिष्य होने से तुम्हें उनका वेश प्रमाण है, तो तीर्थंकर के शिष्य होने के ही कारण
७६. “यस्माज्जिनास्तीर्थकराः सर्वेऽपि निरुपमधृतिसंहननाश्छद्मस्थावस्थायां चतुर्ज्ञानाः, अतिशय
सत्त्वसम्पन्नाः, तथा अच्छिद्रपाणिपात्रा जितसमस्तपरीषहाश्च ---" हेम.वृत्ति / विशेषाव
श्यकभाष्य / गा. २५८१-८३। ७७. "तर्हि तद्वचनादेव तीर्थकरोपदेशादेव निरुपघृति-संहननाद्यतिशयरहितोऽचेलो नग्नो मा
__ भूस्त्वम्।" हेम.वृत्ति/ विशेषावश्यकभाष्य / गा.२५८५ । ७८. विशेषावश्यकभाष्य / गाथा २५८५ की हेमचन्द्रसूरिकृत वृत्ति में उद्धृत।
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