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११६ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०२ / प्र० ४
उल्लेखों के सर्वथा विपरीत है। यदि 'दर्शनसार' के उल्लेखानुसार श्वेताम्बरसंघ की उत्पत्ति वि० सं० १३६ में मानी जाती है, तो इसी ग्रन्थ में यापनीयसंघ का उद्भव वि० सं० ७०५ या २०५ में बतलाया गया है, अतः इसके अनुसार यापनीयसंघ का भी उत्पत्तिकाल वि० सं० ७०५ या २०५ मानना चाहिए। अस्तु, दर्शनसार के उल्लेख से स्पष्ट है कि ग्रन्थों में श्वेताम्बर और यापनीय संघों की उत्पत्ति भिन्न-भिन्न समयों में ही बतलायी गयी है, एक ही समय में नहीं ।
इस प्रकार ऐसा एक भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है, जिससे यह सिद्ध हो कि श्वेताम्बर और यापनीय सम्प्रदाय एक ही मूलसम्प्रदाय से प्रसूत हुए थे। अतः डॉ० सागरमल जी की यह स्थापना सर्वथा कपोलकल्पित ठहरती है कि श्वेताम्बर और यापनीय सम्प्रदाय उत्तरभारतीय सचेलाचेल मूल निर्ग्रन्थ संघ से निकले थे। जिस संघ का अस्तित्व ही नहीं था, उससे उक्त सम्प्रदायों की उत्पत्ति मानना आकाशकुसुम से सुगंध की उत्पत्ति मानना है ।
यतः डॉ० सागरमल जी ने 'जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय' ग्रन्थ के प्रकाशन के आठ वर्षों बाद लिखे गये 'जैनधर्म की ऐतिहासिक विकासयात्रा' नामक ग्रन्थ ३ में सचेलाचेल-निर्ग्रन्थसंघ के अस्तित्व की मान्यता का परित्याग कर दिया है, अतः उक्त संघ से श्वेताम्बर और यापनीय संघों का जन्म हुआ था, उनकी यह मान्यता स्वतः निरस्त हो जाती है। उपर्युक्त नये ग्रन्थ में उन्होंने लिखा है
" दक्षिण का अचेल - निर्ग्रन्थसंघ भद्रबाहु की परम्परा से और उत्तर का सचेलनिर्ग्रन्थसंघ स्थूलभद्र की परम्परा से विकसित हुआ।” (पृ. २८-२९) । तदनन्तर वे लिखते हैं- " ईसा की द्वितीय शती में महावीर के निर्वाण के छह सौ नौ वर्ष पश्चात् उत्तरभारत के निर्ग्रन्थसंघ में विभाजन की एक अन्य घटना घटित हुई, फलतः उत्तरभारत का निर्ग्रन्थसंघ सचेल एवं अचेल ऐसे दो भागों में बँट गया । -- -- शिवभूति की उत्तरभारत की इस अचेलपरम्परा को श्वेताम्बरों ने बोटिक ( भ्रष्ट ) कहा, किन्तु आगे चलकर यह परम्परा 'यापनीय' के नाम से ही अधिक प्रसिद्ध हुई।" (पृ.२९-३०)।
इससे स्पष्ट है कि डॉक्टर सा० ने अपने संशोधित मत में स्थूलभद्र (चौथी शती ई० पू० ) की परम्परा से विकसित सचेलसंघ के विभाजन से यापनीयसंघ की उत्पत्ति मानी है। इससे उनका यह मत भी निरस्त हो जाता है कि श्वेताम्बर और यापनीय समान परम्परा से उत्पन्न हुए थे । उनके ही उपर्युक्त वचनों के अनुसार समान परम्परा से तो ईसापूर्व चौथी शती में भद्रबाहुवाले दक्षिण - प्रस्थित अचेल - निग्रन्थसंघ की तथा स्थूलभद्रवाले उत्तरस्थित सचेलसंघ की उत्पत्ति हुई थी ।
७३. प्रकाशक : प्राच्य विद्यापीठ, शाजापुर (म.प्र.), सन् २००४ ई. ।
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