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अ०२/प्र०३
___ काल्पनिक हेतुओं की कपोलकल्पितता का उद्घाटन / १०७
कपोलकल्पित होने के ऐतिहासिक प्रमाण ऐतिहासिक प्रमाणों से भी उत्तरभारतीय-सचेलाचेल-निर्ग्रन्थ-परम्परा का अस्तित्व मिथ्या सिद्धा होता है। यथा
१. जैसे पाँचवीं शती ई० के देवगिरि एवं हल्सी के अभिलेखों में श्वेतपटमहाश्रमणसंघ, निर्ग्रन्थ-महाश्रमणसंघ, यापनीयसंघ एवं कूर्चकसंघ का उल्लेख है, वैसे पाँचवीं शती ई० या उससे पूर्व के किसी भी अभिलेख में उत्तरभारतीय निर्ग्रन्थसंघ या उत्तरभारतीय-सचेलाचेल-निर्ग्रन्थसंघ का उल्लेख नहीं है। न ही किसी सम्प्रदाय के साहित्य में उसकी चर्चा है। अतः उसका अस्तित्व इतिहास से प्रमाणित नहीं है, अर्थात् वह कपोलकल्पित है।
२. उपर्युक्त अभिलेखों में निर्ग्रन्थ शब्द श्वेताम्बरों, यापनीयों और कूर्चकों के प्रतिपक्षी दिगम्बरों के लिए प्रयुक्त है। इससे सिद्ध होता है कि परम्परा से दिगम्बरजैन मुनि ही लोक में निर्ग्रन्थ शब्द से अभिहित होते थे। इसलिए दिगम्बरजैन मुनियों से भिन्न सचेलाचेल-सम्प्रदाय के मुनियों के लिए 'निर्ग्रन्थ' शब्द का प्रयोग हो ही नहीं सकता था, क्योंकि ऐसा करने से उन मुनियों की पृथक् सम्प्रदाय के रूप में पहचान असंभव हो जाती। इससे सिद्ध है कि 'उत्तरभारतीय-सचेलाचेल-निर्ग्रन्थसंघ' नाम का संघ कपोलकल्पित है।
३. ईसा की पाँचवी शती के पूर्व भी सम्राट अशोक के दिल्ली (टोपरा) के सातवें स्तम्भलेख (ई० पू० २४२) में निर्ग्रन्थों (निगंठेसु) अर्थात् दिगम्बरजैन मुनियों का उल्लेख हुआ है। (देखिये, अध्याय २/प्र.६ / शी.२)। तथा ईसापूर्व छठी शती के बुद्धवचन-संग्रहरूप त्रिपिटक-साहित्यगत अंगुत्तरनिकाय नामक-ग्रन्थ में और प्रथम शताब्दी ई० के बौद्धग्रन्थ दिव्यावदान में निर्ग्रन्थ शब्द से दिगम्बरजैन साधुओं का कथन किया गया है। (देखिये, अध्याय ४/प्र.२ / शी.१.१ एवं १४)। इसी प्रकार अशोक-कालीन अथवा ईसापूर्व प्रथम शती के बौद्ध ग्रन्थ अपदान में सेतवत्थ (श्वेतवस्त्र-श्वेतपट) नाम से श्वेताम्बर साधुओं की चर्चा की गयी है। (देखिये, अध्याय ४/प्र.२ / शी.१.२)। इन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि दिगम्बर और श्वेताम्बर संघों का उदय ईसापूर्वकाल में ही हो चुका था, अतः पाँचवीं शताब्दी ई० में उत्तरभारतीय-सचेलाचेल-निर्ग्रन्थसंघ के विभाजन से श्वेताम्बर और यापनीय संघों के जन्म की मान्यता कपोलकल्पित है। इस प्रकार श्वेताम्बर-यापनीय-संघोत्पत्तिरूप कार्य के अभाव से उसके कारणरूप उत्तरभारतीय-सचेलाचेल-निर्ग्रन्थसंघ का अभाव सिद्ध होता है।
४. डॉक्टर सा० की कल्पनानुसार उक्त संघ में सचेल और अचेल दोनों लिंगों
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