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[चौबीस]
जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ इस संघ की अचेल और सचेल, दोनों लिंगों से मुक्ति की मान्यता बड़ी अयुक्तिसंगत थी। जब वस्त्रधारण करते हुए मुक्ति हो सकती है, तब मोक्ष के लिए नग्न रहकर शीतादि-परीषहों का अनावश्यक कष्ट भोगने का क्या औचित्य ? लोगों के इस प्रश्न का समाधान यापनीयमत में नहीं था। इसलिए यह मत अधिक दिनों तक जीवित नहीं रह सका और अपने जन्म के एक हजार वर्ष बाद ही अर्थात् १५०० ई० में कालकवलित हो गया। ____कालान्तर में भगवान् महावीर के अनुयायी एकान्त-अचेलमुक्तिवादी निर्ग्रन्थसंघ से काष्ठासंघ, द्राविड़संघ, माथुरसंघ आदि संघों की उत्पत्ति हुई। इन संघों के साधु यद्यपि एकान्त-अचेलमुक्तिवादी थे, तथापि इन्होंने अपने सिद्धान्तों में कुछ ऐसा परिवर्तन कर लिया कि इन्हें जैनाभास घोषित कर दिया गया।
श्वेताम्बर आचार्यों, मुनियों एवं विद्वानों ने आरंभ से ही यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि भगवान् महावीर ने श्वेताम्बरमत (सवस्त्रतीर्थ) का ही उपदेश दिया है, दिगम्बरमत का नहीं। दिगम्बरमत छद्मस्थ-प्रणीत है। प्राचीन श्वेताम्बराचार्यों का कथन है कि बोटिक शिवभूति नामक एक साधारण पुरुष ने वीरनिर्वाण सं० ६०९ (ई० सन् ८२) में दिगम्बरमत चलाया था। आधुनिक श्वेताम्बर मुनि एवं विद्वान् मानते हैं कि दिगम्बरमत की नींव आचार्य कुन्दकुन्द ने विक्रम की छठी शताब्दी में डाली थी। वे कुन्दकुन्द को भी प्राचीन आचार्य न मानकर विक्रम की छठी शताब्दी में उत्पन्न बतलाते हैं। श्वेताम्बर आचार्यों एवं विद्वानों का कथन है कि चूंकि दिगम्बरमत छद्मस्थप्रणीत है, इसलिए उनके शास्त्र भी छद्मस्थों के द्वारा ही रचे गये हैं और उनकी रचना श्वेताम्बर-शास्त्रों को देखकर की गयी है। इसका सबूत वे यह देते हैं कि दिगम्बरग्रन्थों में श्वेताम्बरग्रन्थों की अनेक गाथाएँ ज्यों की त्यों मिलती हैं। दिगम्बराचार्यों द्वारा रचित कसायपाहुड, तत्त्वार्थसूत्र और सन्मतिसूत्र को तो उन्होंने श्वेताम्बरग्रन्थ ही घोषित कर दिया है।
इधर दिगम्बर विद्वान् पं० नाथूराम जी प्रेमी ने अपने ग्रन्थ 'जैनसाहित्य और इतिहास' में दिगम्बर-परम्परा के ग्रन्थ भगवती-आराधना, उसकी विजयोदया टीका, मूलाचार, और तत्त्वार्थसूत्र को यापनीयपरम्परा का ग्रन्थ माना है और दिगम्बरविदुषी डॉ० श्रीमती कुसुम पटोरिया ने भी 'यापनीय और उनका साहित्य' नामक ग्रन्थ में प्रेमी जी का अनुसरण करते हुए इन्हें यापनीयग्रन्थ बतलाया है। इनके साथ उन्होंने सन्मतिसूत्र, हरिवंशपुराण तथा बृहत्कथाकोश, इन दिगम्बरग्रन्थों को भी यापनीयग्रन्थ सिद्ध करने की चेष्टा की है। इन दोनों से प्रेरणा और मार्गदर्शन प्राप्त कर आधुनिक श्वेताम्बर
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