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अ० २ / प्र० ३
काल्पनिक हेतुओं की कपोलकल्पितता का उद्घाटन / ९९
३. वस्त्रलब्धिरहित जिनकल्पिक साधुओं को चादर या कम्बल ओढ़नेवाला बतलाया गया है, जो तत्त्वार्थसूत्र में उपदिष्ट नाग्न्यपरीषहजय एवं शीतादिपरीषहजय प्रतिकूल है।
४. वस्त्रलब्धिमान् साधुओं के विषय में यह माना गया है कि उनका शरीर वस्त्रलब्धिजनित अलौकिकवस्त्र से आच्छदित हो जाता है, अतः न तो उनकी नग्नता दिखाई देती है, न ही उन्हें शीतादिपरीषह होते हैं । इस तरह वस्त्रलब्धि भी उनके नाग्न्यपरीषहजय एवं शीतादिपरीषहजय में बाधक है।
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५. सचेल स्थविरकल्प से मोक्षप्राप्ति मान लिये जाने पर जिनकल्प की मान्यता अयुक्तिमत् सिद्ध होती है ।
६. श्वेताम्बराचार्यों ने जम्बूस्वामी के निर्वाण के बाद साधुओं के लिए वस्त्रधारण की अनिवार्यता इसलिए बतलायी है कि पंचमकाल में वज्रवृषभनाराचसंहनन उपलब्ध न होने से शीतादिपरीषहजय संभव नहीं है, न ही लज्जा और जुगुप्सा पर विजय प्राप्त की जा सकती है - " तद् वस्त्रं निरतिशयेन तथाविधधृतिसंहननादिरहितेन साधुनाऽवश्यं धारणीयम्" (हेम वृत्ति/ विशे. भा. / गा. २६०२ - ३ ) । किन्तु जिनकल्पी साधुओं को भी इन्हीं कारणों से चादर और कम्बल (कल्प) रखने की अनुमति दी गयी है, जैसा कि प्रवचनपरीक्षाकार ने कहा है- "एवमुक्तप्रकारेण जिनकल्पिकाः स्थविरकल्पिकाश्चेत्युभयेऽपि प्रागुक्तगुणहेतवे वस्त्राणि बिभ्रति । अन्यथा प्रवचनखिंसादयः स्त्रीजनस्यात्मनश्च मोहोदयादयो बहवो दोषाः स्युः ।" ( प्रव. परी . / वृत्ति / १ / २/३१/पृ.९५)। इससे सिद्ध है जिनकल्पिक साधु भी स्थविरकल्पिकों के समान वज्रवृषभनाराचसंहननधारी नहीं होते थे। फिर भी उन्हें वज्रवृषभनाराचसंहननधारी बतलाया गया है, जिससे सिद्ध होता है कि श्वेताम्बरमतोक्त जिनकल्प प्रामाणिक एवं युक्तिमत् नहीं है, अपितु कपोलकल्पित है।
३.८. अचेलत्व की 'जिनकल्प' संज्ञा स्वकल्पित
श्वेताम्बर - आगम आचारांग में भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट और दिगम्बरमतसम्मत अचेलत्व को स्वीकार किया गया है । उसमें शीत से बचने के लिए कुल तीन वस्त्र ग्राह्य बतलाये गये हैं और शीत के क्रमशः कम होने पर एक-एक वस्त्र त्यागते जाने का उपदेश दिया गया है। एक वस्त्र का त्याग कर देनेवाले साधु को अवमचेल, दो का त्याग कर देनेवाले को एकशाटक और तीनों का त्याग कर नग्न हो जाने वाले साधु को अचेल कहा गया है। यथा
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'अह पुण एवं जाणिज्जा - उवाइक्कंते खलु हेमंते गिम्हे पडिवन्ने अहापरिजुन्ना वत्थाई परिट्ठविज्जा, अदुवा संतरुत्तरे, अदुवा ओमचेले, अदुवा एगसाडे, अदुवा अचेले ।" ( आचारांग / १ / ७ / ४ / २०९ ) ।
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