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८२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०२ / प्र० ३
"ई० सन् की पाँचवीं - छठी शताब्दी तक जैनपरम्परा में कहीं भी स्त्रीमुक्ति का निषेध नहीं था । स्त्रीमुक्ति एवं सग्रन्थ ( सवस्त्र) की मुक्ति का सर्वप्रथम निषेध आचार्य कुन्दकुन्द ने सुत्तपाहुड में किया है।" (जै. ध. या.सं./ पृ.३९४) । “कुन्दकुन्द ही मूलसंघ के प्रथम आचार्य थे।" (जै. ध. या.स./ पृ.४६ ) । "कुन्दकुन्द की स्त्रीमुक्ति-निषेधक परम्परा सुदूर दक्षिण में ही प्रस्थापित हुई थी । " (जै. ध. या.स./ पृ.४०२) ।
इस प्रकार सवस्त्रमुक्ति एवं स्त्रीमुक्ति के निषेधक एकान्त अचेलमार्गी दिगम्बरसंघ .को कुन्दकुन्द द्वारा स्थापित दक्षिणभारतीय निर्ग्रन्थसंघ बतलाकर उत्तरभारत के निर्ग्रन्थसंघ को अचेलसचेल-उभयात्मक तथा स्त्रीमुक्ति आदि का समर्थक प्ररूपित करते हुए डॉक्टर सा० लिखते हैं
"महावीर के काल से ही निर्ग्रन्थसंघ में नग्नता का एकान्त आग्रह नहीं था, किन्तु उसे अपवाद के रूप में ही स्वीकृत किया गया था ।" (जै. ध. या.स./पृ. २५) ।
" उमास्वाति भी मतभेदों के बावजूद उसी उत्तरभारत की आगमिक निर्ग्रन्थ परम्परा के आचार्य हैं, जिससे श्वेताम्बरों और यापनीयों का विकास हुआ है और जो स्त्रीमुक्ति, गृहस्थमुक्ति, अन्यतैर्थिकमुक्ति, केवलिभुक्ति आदि की समर्थक रही है।" (जै. ध. या. स. / पृ. २५० ) ।
"महावीर के धर्मसंघ में जब वस्त्रपात्र आदि में वृद्धि होने लगी और अचेलकत्व की प्रतिष्ठा क्षीण होने लगी, तब उससे अचेलता के पक्षधर यापनीय और सचेलता के पक्षधर श्वेताम्बर ऐसी दो धाराएँ निकलीं ।" (जै. ध. या. स. / पृ. २४) ।
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" वस्तुतः जब उत्तरभारत में प्रवर्तित महावीर के श्रमणसंघ में वस्त्रपात्र रखने का आग्रह जोर पकड़ने लगा, भगवान् महावीर द्वारा उपदिष्ट एवं आचरित अचेलक अर्थात् जिनकल्प का विच्छेद बताकर उसका उन्मूलन किया जाने लगा और वस्त्रपात्र के आपवादिक मार्ग ( स्थविरकल्प) को ही तत्कालीन परिस्थितियों में एकमात्र मार्ग माना जाने लगा, तो शिवभूति प्रभृति कुछ प्रबुद्ध मुनियों ने उसका विरोध किया । इस विरोध की फलश्रुति - स्वरूप ही उस सम्प्रदाय का जन्म हुआ, जो यापनीयों की पूर्व अवस्था थी और जिसे श्वेताम्बरों ने बोटिक या बोडिय कहा था ।" (जै. ध. या. स./ पृ. ३८६-३८७)।
इन कथनों से स्पष्ट हो जाता है कि डॉ. सागरमल जी की कल्पनानुसार भगवान् महावीर ने औत्सर्गिक अचेल जिनकल्प एवं आपवादिक सचेल स्थविरकल्प, इन दोनों मार्गों से मोक्ष की प्राप्ति बतलाई है और उत्तरभारत का निर्ग्रन्थसंघ इसी सचेलाचेलमार्ग का अनुगामी था ।
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