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अ०२/प्र०२ काल्पनिक हेतुओं की कपोलकल्पितता का उद्घाटन / ७९ नींव कुन्दकुन्द ने डाली थी। क्योंकि एक साथ उत्पन्न होने पर इन चारों संघों के संस्थापक पुरुष दिगम्बरमत की स्थापना करनेवाले सिद्ध होते हैं।
दूसरी बात यह है कि इनकी एक साथ उत्पत्ति का कोई प्रमाण मुनि जी ने उपस्थित नहीं किया, जब कि देवसेनकृत दर्शनसार में उनकी उत्पत्ति भिन्न-भिन्न समयों में बतलायी गयी है, जैसे द्राविड़संघ की उत्पत्ति विक्रममृत्यु-संवत् ५२६ में, काष्ठासंघ की ७५३ में, माथुरसंघ की ९५३ में और यापनीयसंघ की ७०५ या २०५ में। इससे सिद्ध होता है मुनिजी का इनको विक्रम की छठी शताब्दी (पाँचवीं शती ई०) में एक साथ उत्पन्न बतलाना अप्रामाणिक है।
इस प्रकार तथाकथित शिवभूति-प्रवर्तित सम्प्रदाय से कभी मूलसंघ-नामधारी अवस्था में और कभी यापनीय-नामधारी अवस्था में दिगम्बरादि संघों की उत्पत्ति की कहानियाँ परस्परविरोधी हैं। वे एक दूसरे को अप्रामाणिक ठहराती हैं और उपर्युक्त विसंगतियों को जन्म देती हैं, फलस्वरूप उनमें से कोई भी पैर नहीं जमा पाती, सब धराशायी हो जाती हैं। अतः हम पाते हैं कि वे अत्यन्त अतर्कसंगत रीति से कपोलकल्पित हैं।
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