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५८ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०२/प्र०२ कौडिन्य १, कोष्टवीर २, इन दोनों की शिष्यपरम्परा से कालान्तर में मत की वृद्धि हो गई। ऐसें दिगम्बर-मत उत्पन्न हुआ।" (पृष्ठ ५४४)।
२. माननीय पं० बेचरदास जी जैन लिखते हैं-"मेरी यह प्रामाणिक कल्पना है कि माथुरी वाचना के समय ही मुनियों में स्पष्टरूप से दो दल हो गये थे। श्वेताम्बरों में जो दिगम्बरों के विषय में यह दन्तकथा है कि वीरात् ६०९ में दिगम्बरों की उत्पत्ति हुई है, इस दन्तकथा में बतलाया हुआ समय और माथुरी वाचना का समय लगभग समीप का होने के कारण पूर्वोक्त मेरी मान्यता को पुष्टि मिलती है। --- एक ने दूसरे को बोटिक और निह्नव कहना प्रारंभ किया, तब दूसरे ने उसका जबाब भ्रष्ट और शिथिल शब्दों में दिया।" (जैन साहित्य में विकार / पृ.४५)।
३. प्रसिद्ध इतिहासकार श्री चिमनलाल जैचन्दशाह ने लिखा है-"श्वेताम्बर मान्यतानुसार इस पन्थभेद का मूल नीचे लिखी बातों में दीखता है। रहवीर गाँव में शिवभूति अथवा सहस्रमल्ल नाम का एक व्यक्ति रहता था। एक समय उसकी माता उससे अप्रसन्न हो गई, इससे वह घर छोड़कर चला गया और जैन साधु बन गया। साधु की दीक्षा लेने के बाद राजा ने उसे एक मूल्यवान् कम्बल भेंट किया और वह उससे अभिमानी हो गया। उसके गुरु ने इसकी ओर उसका ध्यान दिलाया, तो वह तब से ही नग्न रहने लगा और उसने फिर दिगम्बरसम्प्रदाय चला दिया। उसकी बहिन उत्तरा ने भी अपने भाई का अनुकरण करने का प्रयत्न किया। परन्तु स्त्रियाँ नग्न रहें, यह उचित नहीं लगने से शिवभूति ने उससे कह दिया कि स्त्री मुक्ति की अधिकारिणी नहीं होती।" (उत्तरभारत में जैनधर्म / पृ.६४)।
___४. आचार्य श्री हस्तीमल जी लिखते हैं-"श्वेताम्बरपरम्परा में बोटिकमत (दिगम्बरमत) की उत्पत्ति के वर्णन में विशेषावश्यकभाष्य, आवश्यकचूर्णि और स्थानांग आदि में मूल-घटना की पूर्णरूपेण समानता और वैषम्यरहित मन:स्थिति का परिचय मिलता है, जब कि दिगम्बरपरम्परा के ग्रन्थों में विविधरूपता व विषम मन:स्थिति की प्रतिध्वनि प्रकट होती है। दोनों परम्पराओं के ग्रन्थों के एतद्विषयक उल्लेखों से इतना तो स्पष्ट है कि वीर नि० सं० ६०६ अथवा ६०९ के लगभग श्वेताम्बर-दिगम्बर का सम्प्रदायभेद प्रकट हुआ।" (जै.ध.मौ.इ./ भा.२ / पृ. ६१३)।
५. श्री देवेन्द्रमुनि शास्त्री बतलाते हैं कि "आवश्यकभाष्य, आवश्यकचूर्णि प्रभृति श्वेताम्बरग्रन्थों में उल्लेख है कि महावीर निर्वाण के ६०९ वर्ष के पश्चात् शिवभूति ने रथवीरपुर नगर में बोटिक-दिगम्बरमत की स्थापना की।" (जै. आ. सा. म. मी./ पृ.५६३)।
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