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अ०२/प्र०२
काल्पनिक हेतुओं की कपोलकल्पितता का उद्घाटन / ५७ कर रहे हों, तब उन्हें दिगम्बर मानना भ्रम कैसे कहला सकता है? यह तो यथार्थज्ञान ही है। हाँ, उन्हें दिगम्बर न मानना भ्रम कहला सकता है। जो आचार्य स्वयं बोटिकों को दिगम्बर सिद्ध करनेवाले प्रमाण प्रस्तुत कर रहे हों, वे उन्हें दिगम्बर न मानें, यह कैसे हो सकता था?
डॉक्टर सा० ने यापनीयसम्प्रदाय को भगवान् महावीर की परम्परा का सही रूप में प्रतिनिधित्व करनेवाला कहा है। (जै.ध.या.स./ लेखकीय / पृ.v)। डॉक्टर सा० की दृष्टि से भगवान् महावीर की सही परम्पराः वही है, जो उन्होंने स्वयं कल्पित की है अर्थात् अचेल-सचेल दोनों मार्गों से मोक्ष माननेवाली परम्परा। यापनीयसम्प्रदाय को महावीर के नाम से कल्पित की गयी इस परम्परा का सही प्रतिनिधि अवश्य माना जा सकता है, किन्तु यापनीयों को बोटिक मानने पर यह सम्भव नहीं है। क्योंकि श्वेताम्बरशास्त्रों में बोटिकों को आठवाँ निह्नव कहा गया है। निह्नव का अर्थ है तीर्थंकर के उपदेश को अमान्य करनेवाला और अपना मत चलानेवाला मिथ्यादृष्टि पुरुष, जैसा कि श्री हरिभद्रसूरि ने कहा है-"निह्नव इति कोऽर्थः? स्वप्रपञ्चतस्तीर्थकरभाषितं निह्नतेऽर्थम्---इति निह्नवो मिथ्यादृष्टिः।" (हारि.वृत्ति./आव.नियु/गा. ७७८/पृ. २०८)।
अतः यापनीयों को बोटिक मानने पर वे (यापनीय) तीर्थंकर महावीर के नाम से कल्पित किये गये सचेलाचेल मोक्षमार्ग के उपदेश को अमान्य करनेवाले सिद्ध होते हैं, न कि सही प्रतिनिधित्व (अनुगमन) करनेवाले। इसलिए यापनीयों और बोटिकों के एकत्व की मान्यता का परित्याग किये बिना डॉक्टर सा० का उपर्युक्त मत सत्य सिद्ध नहीं हो सकता। श्वेताम्बराचार्यों ने महावीर के द्वारा जिस सचेल मोक्षमार्ग का उपदेश दिये जाने की कल्पना की है, उसे दिगम्बरों ने ही अमान्य किया है और मूलसंघ या निर्ग्रन्थसंघ नामक दिगम्बरसंघ के मत को ही श्वेताम्बरों ने नवीन प्रचलित मत माना है, इसलिए बोटिककथा के अनुसार दिगम्बर ही आठवें निह्नव सिद्ध होते हैं। इससे स्पष्ट है कि आवश्यकनियुक्ति आदि श्वेताम्बरग्रन्थों में दिगम्बरों को ही बोटिक कहा गया है, यापनीयों को नहीं। इस प्रकार बोटिक और यापनीय एक ही परम्परा के नाम नहीं है, अपितु परस्पर विपरीत परम्पराओं के अभिधान हैं। ६.४. आधुनिक श्वेताम्बर विद्वानों का मत : बोटिक-दिगम्बर एक
अनेक आधुनिक श्वेताम्बर आचार्यों और विद्वानों ने भी 'बोटिक' शब्द से 'दिगम्बर' अर्थ ही ग्रहण किया है। उदाहरणार्थ
१. उन्नीसवीं शताब्दी ई० के श्वेताम्बराचार्य श्री विजयानन्द सूरीश्वर 'आत्माराम' • जी ने अपने ग्रन्थ 'तत्त्वनिर्णयप्रासाद' में लिखा है-"तिस शिवभूति ने दो चेले करे
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