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५४ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १
अ०२/प्र०२. मल्लाभिधानशिवभूत्यपरनाम्नः पुरुषादिति। अनेन दिगम्बरमतस्यादिकर्ता प्रदर्शितः।" (प्रव.परी./ वृत्ति / गा.४/ पृ.६६)।
अनुवाद-"इनके बोटिकमत की उत्पत्ति वीरनिर्वाण के बाद ६०९ वर्ष व्यतीत होने पर रथवीर नगर में राजमान्य सहस्रमल्ल नामक पुरुष से हुई थी, जिसका दूसरा नाम शिवभूति था। इस कथन से दिगम्बरमत के आदिकर्ता का बोध कराया गया है।"
प्रवचनपरीक्षाकार ने बोटिक शिवभूति की स्त्रीमुक्ति-विरोधी मान्यता का तार्किक अनुसन्धान इस प्रकार किया है
"अथ यदा शिवभूतिना नग्नभावोऽभ्युपगतस्तदानीमुत्तरानाम्न्याः स्वभगिन्या वस्त्रपरिधानमनुज्ञातम्। एवं च सति यदि स्त्रीणां मुक्तिं प्ररूपयति तदा सवस्त्रनिर्वस्त्रयोरविशेषापत्त्या स्वकीयनग्नभावस्य केवलं क्लेशतैवापद्येतेति विचिन्त्य स्त्रीणां मुक्तिनिषिद्धा।" (प्रव.परी./वृत्ति / पातनिका /१/२/१९ / पृ.८२)।
अनुवाद-"जिस समय शिवभूति ने नग्नवेश धारण किया, उसी समय उसने अपनी उत्तरा नाम की बहिन को वस्त्र धारण करने की आज्ञा दी। इस स्थिति में यदि वह स्त्रीमुक्ति का प्ररूपण करता, तो मोक्ष के लिए वस्त्रधारण करने और न करने में कोई विशेषता न रहने से उसका नग्न रहना केवल क्लेश का कारण सिद्ध होता। इसलिए उसने स्त्रीमुक्ति का निषेध कर दिया।"
शिवभूति के केवलिभुक्ति-विरोधी मत का युक्ति के द्वारा उद्घाटन प्रवचनपरीक्षाकार इन शब्दों में करते हैं
"अथोत्पन्नदिव्यज्ञाना अर्हन्तो न भिक्षार्थं व्रजन्ति, साध्वानीतान्नादिभुक्तौ च सप्तविधः पात्रनिर्योगोऽवश्यमभ्युपगन्तव्यः स्यात्। तथा च नाग्न्यव्रतं स्त्रीमुक्तिनिषेधश्चेत्युभयमपि दत्ताञ्जल्येव स्यादिति विचिन्त्य शिवभूतिना केवलिनो भुक्तिनिषिद्धा।" (प्रव.परी./वृत्ति/पातनिका/१/२/४३/ पृ.१०४)।
अनुवाद-"केवलज्ञान होने पर अरहन्त भिक्षा के लिए नहीं जाते और साधुओं द्वारा लाये गये अन्नादि का भोजन करने की स्थिति में सात प्रकार का पात्रनिर्योग स्वीकार करना आवश्यक है। ऐसा करने पर नाग्न्यव्रत और स्त्रीमुक्तिनिषेध दोनों को तिलांजलि देनी होगी, यह सोचकर शिवभूति ने केवली के कवलाहार का निषेध कर दिया।"
इन वक्तव्यों में प्रवचनपरीक्षा के कर्ता ने बोटिकमत को दिगम्बरमत कहा है तथा बोटिकों को स्त्रीमुक्ति तथा केवलिभुक्ति का प्रतिषेधक बतलाया है।
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