SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 246
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२ / जैनपरम्परा और यापनीयसंघ / खण्ड १ अ०२ / प्र० २ थे, जिससे उन्होंने यापनीयों को भ्रम से दिगम्बर मान लिया । यह तो इतना बड़ा अज्ञान है कि इसके कारण उन्हें श्वेताम्बर और दिगम्बर का भी भेद पहचानने में असमर्थ मानना होगा। इससे तो वे विशेषावश्यकभाष्य की टीका के भी अयोग्य सिद्ध हो जाते हैं । किन्तु, मैं यह मानने में असमर्थ हूँ कि श्री मलधारी हेमचन्द्रसूरि इतने अज्ञानी थे कि उन्होंने भ्रम से यापनीयों को दिगम्बर मान लिया है। वस्तुतः उन्होंने शिवभूति को उसके नग्न हो जाने से दिगम्बर नहीं माना है, अपितु वह वस्त्रग्रहण को मूर्च्छा, भय, कषाय आदि अनेक दोषों की उत्पत्ति का कारण बतलाकर मोक्ष में सर्वथा बाधक मानता है तथा कहता है कि केवल जिनलिंगरूप जिनकल्प (सर्वथा वस्त्ररहित नग्न मुद्रा) से ही मोक्ष हो सकता है - " परलोकार्थिना स एव निष्परिग्रहो जिनकल्पः कर्त्तव्यः, किं पुनरनेन कषायभय- मूर्च्छादिदोषनिधिना परिग्रहानर्थेन "३८ उसकी इस विचाराधारा से उसे दिगम्बर माना है, क्योंकि एकमात्र जिनलिंग (नग्नमुद्रा) से मोक्ष मानने का फलितार्थ है- श्वेताम्बरों और यापनीयों को मान्य सवस्त्रमुक्ति को अस्वीकार करना । सवस्त्रमुक्ति की अस्वीकृति से स्थविरकल्पियों, गृहस्थों, परतीर्थिकों और स्त्रियों की मुक्ति अमान्य हो जाती है। अतः सवस्त्रमुक्ति को अमान्य करना दिगम्बर होने का ही लक्षण है। इस प्रकार हेमचन्द्रसूरि नग्नता के भ्रम में पड़ कर नहीं, अपितु शिवभूति के सैद्धान्तिक तर्कों के तल में उतरकर इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि वह दिगम्बर है। इसलिए भले ही मूल बोटिककथा में स्पष्ट शब्दों में स्त्रीमुक्ति की चर्चा नहीं है, किन्तु उसमें की गई सैद्धान्तिक चर्चा इसी निष्कर्ष पर पहुँचाती है कि शिवभूति स्त्रीमुक्ति का विरोधी है। हेमचन्द्रसूरि ने यह भी देखा है कि वह अपने सम्प्रदाय में अपनी बहिन उत्तरा को दीक्षित नहीं करता, केवल दो पुरुषों, कौण्डिन्य और कुट्टवीर को दीक्षा देता है और उन्हीं से बोटिकपरम्परा प्रचलित होती है । इस सैद्धान्तिक वैशिष्ट्य और व्यावहारिक दृष्टान्त के आधार पर ही श्री हेमचन्द्रसूरि इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि बोटिक शब्द का प्रयोग दिगम्बरों के लिए ही किया गया है। इससे माननीय मालवणिया जी का यह कथन भी असत्य सिद्ध हो जाता है कि प्रारंभिक श्वेताम्बराचार्य स्त्रीमुक्ति-निषेधक दिगम्बरसम्प्रदाय से परिचित नहीं थे, क्योंकि एक तो वे बोटिक नाम से दिगम्बरसम्प्रदाय से परिचित थे, दूसरे नग्नक्षपणक या क्षपणक नाम से भी इस सम्प्रदाय को वे जानते थे । उदाहरणार्थ हेमचन्द्रसूरि ने विशेषावश्यकभाष्य (गाथा २५८५ ) की वृत्ति में पूर्वपक्ष की ओर से यह गाथा उद्धृत की है ३८. हेमचन्द्रसूरिकृत वृत्ति / विशेषावश्यकभाष्य / गा. २५५२ / पृ.५११ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004042
Book TitleJain Parampara aur Yapaniya Sangh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2009
Total Pages844
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy