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अ० २ / प्र० २
काल्पनिक हेतुओं की कपोलकल्पितता का उद्घाटन / ५१
क - जो जिस वस्तु को चाहता है, वह उसके निमित्त और उपादान की आकांक्षा करता है, जैसे घट को चाहनेवाला उसके मृत्पिण्डरूप उपादान को चाहता है। इसी प्रकार मुनियों को चारित्र की आकांक्षा होती है, और उसका निमित्त वस्त्र है, अतः वे वस्त्र को चाहते हैं ।
ख - जिस वस्तु की उत्पत्ति जहाँ नहीं होती, वहाँ उत्पत्ति के सम्पूर्ण कारणों का अभाव होता है, जैसे शुद्ध (मिट्टी आदि से रहित ) शिला में अंकुरोत्पत्ति के कारण न होने से अंकुर उत्पन्न नहीं होता । किन्तु स्त्रियों में मुक्ति के कारणों का अभाव नहीं है, अतः उनकी मुक्ति का भी अभाव नहीं है । ३६
बोटिक शिवभूति की मान्यताओं को अप्रामाणिक सिद्ध करने के लिए श्री हेमचन्द्रसूरि ने मुनि के लिए वस्त्रधारण के औचित्य और स्त्रीमुक्ति को सिद्ध करने का जो यह प्रयत्न किया है, उससे स्पष्ट है कि वे बोटिक शिवभूति को दिगम्बरमत का प्रवर्तक मानते थे।
मालवणिया जी का मत युक्ति-प्रमाणविरुद्ध - पं० दलसुख जी मालवणिया लिखते हैं कि श्री हेमचन्द्रसूरि ने नग्नता के भ्रम से बोटिक को दिगम्बर मान लिया है, इसीलिए उन्होंने यहाँ स्त्रीमुक्ति की चर्चा उठाई है। मूल बोटिककथा में स्त्रीमुक्ति की चर्चा की कोई सूचना ही नहीं है, अतः हेमचन्द्रसूरि को यह चर्चा उठाने की आवश्यकता नहीं थी। ३७ चूँकि मालवणिया जी ने बोटिकों को यापनीय माना है, इसलिए उनके कथन का अभिप्राय यह है कि श्री हेमचन्द्रसूरि ने 'नग्नता' के भ्रम से यापनीयों को दिगम्बर मान लिया है।
ऐसा लगता है कि विशेषावश्यकभाष्य के इतने बड़े वृत्तिकार एवं समकालीन यापनीय सम्प्रदाय के प्रत्यक्षदर्शी बहुश्रुत आचार्य को माननीय मालवणिया जी इतना अज्ञानी समझते हैं कि वे यापनीय और दिगम्बरों के भेद को भी पहचानने में असमर्थ
३६. " एतासां च बोटिक - व्यतिकर - सम्बद्धानां सर्वासामपि गाथानामर्थं संक्षिप्य 'इह यो यदर्थी न स तन्निमित्तोपादानं प्रत्यानादृतः, यथा घटार्थी मृत्पिण्डोपादानं प्रति, चारित्रार्थिनश्च यतयः, तन्निमित्तं च चीवरमिति, न चास्यासिद्धत्वम्' इत्यादिना सूत्र - वस्त्र - पात्रपरिग्रहविषयं वादस्थानकं वृद्धैर्विचारितमास्ते, तच्चोत्तराध्ययनेषु द्वितीये परिषहाध्ययने आचेलक्यपरीषहे बृहट्टीकायां तदर्थिनान्वेषणीयम्। तथा 'इह खलु यस्य यत्रासम्भवो न तस्य तत्र कारणावैकल्यं, यथा शुद्धशिलायां शाल्यङ्कुरस्य, अस्ति च तथाविधस्त्रीषु मुक्तेः कारणावैकल्यं, न चायमसिद्धो हेतुः' इत्यादिना विरचितं स्त्रीनिर्वाणविषयमपि वादस्थानकं तत्रैव षट्त्रिशत्तमाध्ययने द्रष्टव्यम्।” (हेम.वृत्ति./ विशेषावश्यकभाष्य / गा. २६०६-२६०९ ) । ३७. 'क्या बोटिक दिगम्बर हैं?' Aspect of Jainology, Vol. II, Page 71.
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