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अ० २ / प्र० २
काल्पनिक हेतुओं की कपोलकल्पितता का उद्घाटन / ४७
हेमचन्द्रसूरि ने बोटिकों को सर्वापलापी ( समस्त वचनों का निषेध करनेवाला), महामिथ्यादृष्टि एवं सर्वविसंवादी (सर्वथा विपरीतमतवाला) विशेषणों से विभूषित किया है । यथा
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'अष्टमं नगरं द्रव्यलिङ्गमात्रेणापि भिन्नानां सर्वापलापिनां महामिथ्यादृशां वक्ष्यमाणानां बोटिकनिह्नवानां लाघवार्थमुत्पत्तिस्थानमुक्तम्" ( हेम. वृत्ति / विशे.भा./गा.२३०३) ।
अनुवाद - " ( आवश्यकनिर्युक्ति की गाथा ७८१ में ) आठवें नगर ( रथवीरपुर) का उल्लेख आगे वर्णित किये जाने वाले उन बोटिक नामक निह्नवों का संक्षेप में निर्देश करने के लिए किया गया है, जो द्रव्यलिंग से भी भिन्न, सर्वापलापी तथा महामिथ्यादृष्टि हैं । "
"तदेवमुक्ता देशविसंवादिनः सप्त निह्नवाः । अथ सर्वविसंवादिनः 'बहुरय पएस अव्वत्त समुच्छा दुग तिग अबद्धिया चेव' इत्यादिगाथायां च शब्दसगृहीतानष्टमान् बोटिकनिह्नवानभिधित्सुराह -।" ( हेम वृत्ति / पातनिका / विशे. भा. / गा. २५५० ) ।
अनुवाद - " इस प्रकार यह उन सात निह्नवों का वर्णन किया गया है जो देशविसंवादी (अल्प विपरीतमतवाले) हैं। अब 'बहुरय' इत्यादि आवश्यकनिर्युक्ति की गाथा में 'च' शब्द से संगृहीत उस बोटिक नामक आठवें निह्नव का कथन किया जा रहा है, जो सर्वविसंवादी (सर्वथा विपरीत - मतवाला ) है । "
आवश्यकचूर्णिकार श्री जिनदासगणिमहत्तर लिखते हैं- ये ( बहुरत, जीवप्रादेशिक, अव्यक्तिक, सामुच्छेदिक, द्वैक्रिय, त्रैराशिक तथा अबद्धिक) सात निह्नव तो एकदेशविसंवादी हैं, किन्तु जो ये बोटिक हैं, वे प्रभूततर विसंवादी हैं- " एते य एगदेसविसंवादिणो, इमे अण्णे पभूततरविसंवादिणो बोडिया भण्णंति।" (आव. चू./ उपो. निर्यु. / आव. सू./पू.भा./पृ.४२७)।
ये सभी आचार्य पाँचवी शताब्दी ई० के बाद हुए हैं। अतः इनके समय में यापनीय सम्प्रदाय 'यापनीय' नाम से ही मौजूद था और वह इतना प्रसिद्ध एवं राजमान्य था कि ईसी की पाँचवीं शताब्दी ३३ के कदम्बनरेशों के अभिलेखों में यापनीयसंघ को श्वेतपटमहाश्रमणसंघ, निर्ग्रन्थमहाश्रमणसंघ तथा कूर्चकसंघ के साथ भूमि आदि के दान द्वारा सत्कृत किये जाने का उल्लेख है । ३४ इसका तात्पर्य यह है कि ये सभी सम्प्रदाय
३३. कदम्बनरेश मृगेशवर्मा (सन् ४७०-४९०) / गुलाबचन्द चौधरी : प्रस्तावना / पृ.२६ / जैनशिलालेख संग्रह / माणिकचन्द्र / भा. ३ |
३४. देखिए, इसी अध्याय का षष्ठ प्रकरण / शीर्षक २ - 'अभिलेखों में 'निर्ग्रन्थ' शब्द दिगम्बरजैनमुनि का वाचक । '
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